Monday, June 30, 2008

मेरे मरने के बाद-८ (" समाज और रस्म")

मेरे मरने के बाद,
लीजिये मेरे विचारों की गंगोत्री का और एक अंजुली जल,
" समाज और रस्म"

किसी की पगडी रस्म होगी,


किसी की जायदाद,


कोई सच्चे आलापों मे,


कोई झूठे आंसुओं मे,


कोई उदाहरणों में,


मुझे खोजता रहेगा॥


वसीयत के कागजों पर,


दस्तखत का कालम,


खाली तो नही!!


असली जद्दोजहद,


तुम्हारे लिए ,


यही एक होगी॥


( कृमशः )


4 comments:

ghughutibasuti said...

ऐसा हो भी सकता है और नहीं भी।
घुघूती बासूती

Prabhakar Pandey said...

सुंदर शब्दों में सजी रचना। बढ़िया। लिखते रहे।

Udan Tashtari said...

पढ़ते जा रहे हैं आपके विचार.

राकेश जैन said...

antar man se shukriya.