Friday, November 27, 2015

गीत हमने कहे नहीं,
रागिनी गाई नहीं;
स्वागत में बस एक,
मन ही बिछोना था;
मन को पढ़ लिया,
और तुम आ गई।
अनोखे से जीवन में,
क्रांति है क्षण-२ में ;
साहस के अंतस में ,
स्वप्न एक सलोना था;
हिम्मत को दाद दी ,
और तुम आ गई।
छत जब उधड़ गई,
वो आसमान बन गई ;
वृष्टि ने सूरज संग,
एक बीज बोया था;
बुलबुल ने पेड़ चुना;
चहकने को आ गई।
कहाँ से चले थे और,
कहाँ कदम ठिठक गए;
लड़खड़ाते क़दमों ने फिर,
ताल को सजोया था ;
ताल में तल्लीन हो,
थिरकने को आ गई।
दुर्गम में सुगमता,
लक्ष्य में एकाग्रता;
आशीष की प्रवलता,
बावा की बुलबुल* वो;
चंचल सी दृष्टि लिए,
एनाक्षी* आ गई।
* एनाक्षी - सुन्दर नयनो वाली, मृगनयनी
* बुलबुल- चहकने के लिए प्रिसिद्ध चिड़िया,मुनिश्री को चिड़िया से बहुत स्नेह है।

Wednesday, September 16, 2015

IIनिःस्वार्थ।।

यह कहता,  
बैठी रहो 
अंदर  आओ 
दाना खाओ। 
रोज़ की तरह
आज भी 
सुनने से पहले 
गौरैया 
उड़ गई। 
यह रोज़ 
का क्रम है
वो जैसे 
आती ही 
बस 
मुझे देखने 
को है -

निःस्वार्थ।।

Friday, July 24, 2015














प्रेयसी, परिणिता हुई, 
हो गई धडकन साथ।
जाऊँ अब में कहीं,
होती है वो साथ।।.

चेहरा उसका सामने, 
नहीं नज़र से दूर।
स्वप्न सुंदरी वही है,
वो खुली पलक का नूर।।

मुझको उसका चाहना,
जैसे चातक की चाह।
ह्रदय बना है नाविका,
बनी है वो मल्लाह।।

साँस साँस का साथ ये,
जब तक सांसों में साँस।
उसकी इतनी आस है,
मेरा है विश्वास।।