Friday, June 27, 2008

मेरे मरने के बाद-७ ("यथाक्रम-यथावत")

प्रिय जनों !

मरना तो शाश्वत सत्य है, पर हमारी कुछ अवधारणाएं, कर्म पुंज बन कर हमारे साथ चलती हैं।

मेरे मरने के बाद विषय के अंतर्गत जो मैं लिख रहा हूँ वो कितना पसंद किया जाएगा, मेरे लिए महत्वपूर्ण तो है, किंतु इस बात से अधिक श्रेयष्कर नहीं की यह विषय पाठकों द्वारा कितना समझा जाएगा॥

लीजिये, लुत्फ़ उठाइए मेरे एक और विचार का,

"यथाक्रम-यथावत"

सूरज सो कर उठेगा,

लालिमा आँखों मे लिए,

लाल-लाल॥

चन्द्रमा भी,

शीतला का,

लिए तिलक भाल,

अपना क्रम रख,

कदम ताल॥

तारे मगर अनंत हैं,

उन अन्तानंत मे,

एक और तारा होगा॥

आदमी की दुनिया मे,

रिक्ति, थोडी हो,

या बहुत,

आसमान के भाल पर,

नया एक तारा होगा॥

कृमशः)

3 comments:

Prabhakar Pandey said...

बड़े भाई। कमाल की रचना।

आदमी की दुनिया मे,

रिक्ति, थोडी हो,

या बहुत,

आसमान के भाल पर,

नया एक तारा होगा॥
बहतु ही गहरी और सच्ची बात कह दी है आपने।

Udan Tashtari said...

सही विचारा जा रहा है.

राकेश जैन said...

shukriya !!! yun hi hausla badhaate rahen...