Sunday, June 8, 2008

आशा के दीप


तुमने ही तो आकर मुझ तक,

आशा के दीप जलाए थे,

मेरे जीवन मे आकर,

आशा के रंग सजाये थे ..

मैं तो रह लेता था ,

अंधरे कमरे मे घुट कर,

तुम ही हाथ पकड़ कर एक दिन,

मुझको बाहर लाये थे॥

तुमने ही तो आ कर मुझ तक,

आशा के दीप जलाये थे॥

मैंने तो रोका था तुमको,

अपने घर के बाहर ही,

पर आकर अन्दर तुमने ही,

सुंदर गीत सजाये थे॥

तुमने ही तो आ कर मुझ तक ,

आशा के दीप जलाए थे॥


मैं तो रो लेता था,

अपने घुटनों पर सर रख के,

पहली बार यहाँ आकर,तुमने ही!

अश्को पर प्रतिबन्ध लगाये थे,

तुमने ही तो आ कर मुझ तक,

आशा के दीप जलाये थे॥









4 comments:

sanjay patel said...

भावपूर्ण कहन के साथ जले हैं आशा के ये दीप.

Udan Tashtari said...

बहुत भावपूर्ण रचना है, बधाई.

कंचन सिंह चौहान said...

kavita to achchhi hi hai... sath hi achchha laga formating dekh kar.... keep it up ..!

राकेश जैन said...

aap ka hi ashirwad hai !!