मेरे मरने के बाद,
लीजिये मेरे विचारों की गंगोत्री का और एक अंजुली जल,
" समाज और रस्म"
किसी की पगडी रस्म होगी,
किसी की जायदाद,
कोई सच्चे आलापों मे,
कोई झूठे आंसुओं मे,
कोई उदाहरणों में,
मुझे खोजता रहेगा॥
वसीयत के कागजों पर,
दस्तखत का कालम,
खाली तो नही!!
असली जद्दोजहद,
तुम्हारे लिए ,
यही एक होगी॥
( कृमशः )
4 comments:
ऐसा हो भी सकता है और नहीं भी।
घुघूती बासूती
सुंदर शब्दों में सजी रचना। बढ़िया। लिखते रहे।
पढ़ते जा रहे हैं आपके विचार.
antar man se shukriya.
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