लीजिए पेश है एक और कविता,
"दाह संस्कार"
मिटटी, मिटटी हो जायेगी,
चेतन पंछी होते ही॥
आग लगेगी उस कोठी मे,
जिस मे चेतन रहता था॥
अचेतन के इसे होंगे हालात,
घर मे रखने से इंकार॥
खो जाएगा, और फ़ना हो जाएगा,
निज जन, निज मन का प्यार॥
(कृमशः)
अच्छी कविता है. तभी तक है शान है जब तक चेतन है. चेतन बाहर तो काया मिटटी.
चिन्तन जारी रखिये, बढ़िया चल रहा है. अब सुकून है.
^अचेतन के इसे होंगे हालात,घर मे रखने से इंकार॥खो जाएगा, और फ़ना हो जाएगा,निज जन, निज मन का प्यार॥^जीवन के कटु सत्य को बयान करती पंक्तियाँ हैं, बधाई।
पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ और आपके विचार जानने का अवसर भी प्राप्त हुआ...सुंदर लेखन के लिये बहुत-बहुत बधाई...
aap sabhi ka tahedil shukriya
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5 comments:
अच्छी कविता है. तभी तक है शान है जब तक चेतन है. चेतन बाहर तो काया मिटटी.
चिन्तन जारी रखिये, बढ़िया चल रहा है. अब सुकून है.
^अचेतन के इसे होंगे हालात,
घर मे रखने से इंकार॥
खो जाएगा, और फ़ना हो जाएगा,
निज जन, निज मन का प्यार॥^
जीवन के कटु सत्य को बयान करती पंक्तियाँ हैं, बधाई।
पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ और आपके विचार जानने का अवसर भी प्राप्त हुआ...
सुंदर लेखन के लिये बहुत-बहुत बधाई...
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