Thursday, June 19, 2008

मेरे मरने के बाद,-४ ("दाह संस्कार")




लीजिए पेश है एक और कविता,


"दाह संस्कार"


मिटटी, मिटटी हो जायेगी,


चेतन पंछी होते ही॥


आग लगेगी उस कोठी मे,


जिस मे चेतन रहता था॥


अचेतन के इसे होंगे हालात,


घर मे रखने से इंकार॥


खो जाएगा, और फ़ना हो जाएगा,


निज जन, निज मन का प्यार॥


(कृमशः)




5 comments:

Unknown said...

अच्छी कविता है. तभी तक है शान है जब तक चेतन है. चेतन बाहर तो काया मिटटी.

Udan Tashtari said...

चिन्तन जारी रखिये, बढ़िया चल रहा है. अब सुकून है.

admin said...

^अचेतन के इसे होंगे हालात,
घर मे रखने से इंकार॥
खो जाएगा, और फ़ना हो जाएगा,
निज जन, निज मन का प्यार॥^
जीवन के कटु सत्य को बयान करती पंक्तियाँ हैं, बधाई।

Dr.Bhawna Kunwar said...

पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ और आपके विचार जानने का अवसर भी प्राप्त हुआ...
सुंदर लेखन के लिये बहुत-बहुत बधाई...

राकेश जैन said...

aap sabhi ka tahedil shukriya