मेरे मरने के बाद,-९ (कल का चलन ??)
मेरे मरने के बाद,प्रिय पाठको !!लीजिये एक और अनुभूति आपसे बांटता हूँ,कल का चलन ??
आधुनिकता के उस दौर में,
शायद तुम मुंडन भी न कराओ॥
तीसरे दिन,
तुम व्यवसायी होने पर,
दुकान खोलने की जल्दी मे रहोगे॥
और नौकरी पेशा होने पर,
हाफ टाइम करने की कोशिश मे॥
जैसा भी हो,
देख लेना !
सुविधा से,
अस्थि विसर्जन॥ (कृमशः)
1 comment:
कितना उदार चिन्तन पीछे छूट जाने वालों के लिए.
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