लीजिये पेश है अगली कविता ,
दुनियादारी
तुम चार दिन रो कर ,
चुप बैठ जाओगी॥
अगर में आज ही मरा,
तो तुम पहाड़ सी उम्र देख,
दूसरा विवाह रच लोगी॥
में अगर एक नन्हा सा ,
आसरा दे कर मरा, तो
तुम उसमे मुझे देख,
जिंदगी के तार-२ बदन को,
फिर से जोड़ने का प्रयास करोगी॥
में अगर ४० के पार मरा, तो
मेरे ऑफिस से मिले रुपयों की,
जोड़-तोड़ कर,
अपने आंसू सुखा लोगी॥
और अगर बूढा मरा, तो
अपने नाती-पोतों से,
दिल बहला लोगी॥
(कृमशः)
3 comments:
क्या पता!! विचार ही तो हैं.
hummmm, sahi kahaa apne vicharon ka pravah hi chal raha hai...shukriya
kya baat hai bhai itne jaldi jane ki mat socho.
hum to chahte hai ki hamari bachi hui umar bhi aapko lag jaye?
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