Tuesday, June 17, 2008

मेरे मरने के बाद, -३ ("अन्तिम यात्रा ")

मेरे मरने के बाद,

क्रम को और आगे बढाते हुए लीजिए पेश है मेरी इस श्रृंख्ला कि एक और रचना,

"अन्तिम यात्रा "

जाने कांधे किसके होंगे,

मेरी मिटटी कि अर्थी में,

जाने कौन जलाएगा,

मेरा झूठापन ,

आग लगा कर अर्थी में,

कौन कपाल क्रिया करेगा,

कौन लगायेगा फेरे॥

मैं तो बीत चुकूंगा तभ तक ,

फिर साथ रहा क्या, इस जग का मेरे॥

व्यवसाय यही था जीवन जब था,

संबंधों मे भेद पाटना ,

कहना कुछ को बहुत पराया,

कुछ को जतलाना ये मेरे॥

आँख मूंदने पर सब आए,

जो थे बहुत पराये कल तक,

या जिनको कहता था अपने- मेरे॥

भेद दृष्टि का ,

लेकर जाना नही भलाई मेरे साथी,

तुम मुक्तिपथ मे मुझे छोड़ कर,

क्षमा ह्रदय से करते जाना ,

निर्विकल्प मे विदा ले सकूं,

जीवन का न हो फिर दोहराना॥

(कृमशः)

और भी बहुत कुछ मेरे सोचे अनुरूप लिखूंगा अगला पायदान है "दाह संस्कार" ।

4 comments:

jasvir saurana said...

aachi rachana. badhai ho.

Udan Tashtari said...

बहुत दूर दूर तक सोच रहे हैं.डिप्रेशन से बचाना भाई अपने आपको. विचारधारा बहुत प्रभावित करती है इसको.

शुभकामनाऐं.

राकेश जैन said...

shukriya, koi depresion nahi hai, man bahut prasanna hota hai tab satya brishti hoti hai..

Unknown said...

bahut khoob rakesh jee buland hausale se likhate rahiye. mureed ho gaye hum to aapake.
Bachchan jee ki madhushala kee bhanti chal rahee hai series. Badhai.