मेरे मरने के बाद,
प्रिय जनों ! श्रृंख्ला को आगे बढाते हुए आपके लिए एक नव कविता प्रेषित कर रहा हूँ, मेरी इस श्रृंख्ला के सच शायद आपने भी अपने चारों ओर देखे हों , दाबे के साथ नही कहूँगा , क्यूंकि मृत्यु से जुड़ी हुई घटनाओं को कौन कितने करीब से देखता ,ये कहा नही जा सकता ॥
चलिए मैं कोशिश करता हूँ ,आपसे कुछ कहने का,
उन्मान है ,
"मानवता "
पड़ोसी,
तंग हाल ,
कंजूस,
कैसा भी हो !
पर उसे,
हमारे सारे ,
रिश्ते दारों को ,
उसके ख़ुद के ,
फ़ोन से
ख़बर लगाना
कितना !
कष्टप्रद होगा ??!!
(कृमशः)
अगला पायदान है - अन्तिम यात्रा, जुरूर आइये मेरे ब्लॉग पर॥
2 comments:
विचार तो सही चल रहा है.
dhanyabad !!!! apke ashish ki zururat hai ..
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