Sunday, June 15, 2008

मेरे मरने के बाद,-२ ("मानवता ")

मेरे मरने के बाद,

प्रिय जनों ! श्रृंख्ला को आगे बढाते हुए आपके लिए एक नव कविता प्रेषित कर रहा हूँ, मेरी इस श्रृंख्ला के सच शायद आपने भी अपने चारों ओर देखे हों , दाबे के साथ नही कहूँगा , क्यूंकि मृत्यु से जुड़ी हुई घटनाओं को कौन कितने करीब से देखता ,ये कहा नही जा सकता ॥

चलिए मैं कोशिश करता हूँ ,आपसे कुछ कहने का,

उन्मान है ,

"मानवता "

पड़ोसी,

तंग हाल ,

कंजूस,

कैसा भी हो !

पर उसे,

हमारे सारे ,

रिश्ते दारों को ,

उसके ख़ुद के ,

फ़ोन से

ख़बर लगाना

कितना !

कष्टप्रद होगा ??!!

(कृमशः)

अगला पायदान है - अन्तिम यात्रा, जुरूर आइये मेरे ब्लॉग पर॥

2 comments:

Udan Tashtari said...

विचार तो सही चल रहा है.

राकेश जैन said...

dhanyabad !!!! apke ashish ki zururat hai ..