दोस्तो ! अक्सर अपनी मृत्यु के बारे मे बात करने को अपशकुन कहा जाता है, पर मैं मानता हूँ ये जीवन उसी महोत्सव कि एक तैयारी है फिर इस पर सोचने, बात करने मे अपशकुन कैसा, ये तो हकीकत को समझने का एक प्रयास है... मैं अब आपसे कुछ ऐसी ही कवितायें कहूँगा जो मृत्यु के बाद के सच से जुड़ी है, हाँ ! मेरी मृत्यु और उससे जुड़े सच, कुछ कड़वे -कुछ मीठे सच,
आप सभी इसमे अपने लिए भी कुछ सच तलाश सकते हैं... वरना ये मेरा सच तो है ही ! साथ ही एक कयाश भी है कि क्या-२ हो सकता है -
"मेरे मरने के बाद
इस श्रंखला की पहली रचना,
(होगी नई शुरुआत आगे की )
सुई मे धागा पिरोने के बाद,
इंजन मे तेल पहुँचने के बाद,
बर्तन के तप चुकने के बाद,
क्या होता है ?
होगा वैसा ही कुछ,
मेरे बाद॥
क्यूंकि मैं पहुँच जाने का नाम नही हूँ,
क्यूंकि मैं रुक जाने का नाम नही हूँ ..
गतिवत हो जाना, गति पा लेना,
क्रम बदल जाए पर,
नियति पर हो ध्यान॥
ये ही है मेरा आगाज़,
मेरा अंदाज़,
सोचो क्या होगा ??
मेरा ! तेरा ! सबका !
कब ??
मेरे मर जाने के बाद ॥
होगा नव आगाज़॥
(कृमशः)
4 comments:
वाह जी वाह.
अद्भुत कविता और एकदम नया प्रयोग.
अच्छा लगा.
आगे का इंतज़ार है.
बहुत बढ़िया प्रयोग है.
mai kuchh nahi kah sakti...kyoki sahityakaar ke saath mai tumhari badi bahan bhi hu.n aur... ..!
dhanyabad , balkishan ji, sameer ji. ap log yun hi protsahit karte rahie , baht achha lagta hai,
Di , sach ke lie kuchh to kahna hoga, sach rishton se pare hai, dukhi na hon... jana to hai hee..
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