मगर सावन अब झरना चालू हो गया है, और मेरा मन भी !! तो लीजिये लुत्फ़ लीजिये मेरी नवीन कविता का ,
सावन झरा,
झर पड़ी मधु बतियाँ।
कोंपल-कोंपल सिहरी,
सिहरी, सारी रतियाँ॥
प्रिय जिनके हैं संग,
उनके अगन प्रेम की उजरी,
जो हैं बिरहन उनके भी,
अगन बिरह कि बिखरी,
पियु-पियु के कोलाहल से,
बादल-बादल सिहरे॥
कौतुक मन मे यूँ उमडे,
कि सारा सावन सिहरे॥
सावन झरा,
झर पड़ी मधु बतियाँ।
कोंपल-कोंपल सिहरी,
सिहरी, सारी रतियाँ॥
झर पड़ी मधु बतियाँ।
कोंपल-कोंपल सिहरी,
सिहरी, सारी रतियाँ॥
2 comments:
बहुत सुन्दर एहसास।बहुत बढिया रचना है।
shukriya Ji,
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