Saturday, July 26, 2008

सावन झरा,झर पड़ी मधु बतियाँ।

इस बार इंदौर में बारिश ने थोड़ा देर से दस्तक दी, और जन मानस बेचैन हो गया कि पता नही इस बार क्या होगा ??!!



मगर सावन अब झरना चालू हो गया है, और मेरा मन भी !! तो लीजिये लुत्फ़ लीजिये मेरी नवीन कविता का ,

सावन झरा,
झर पड़ी मधु बतियाँ।
कोंपल-कोंपल सिहरी,
सिहरी, सारी रतियाँ॥
प्रिय जिनके हैं संग,
उनके अगन प्रेम की उजरी,
जो हैं बिरहन उनके भी,
अगन बिरह कि बिखरी,
पियु-पियु के कोलाहल से,
बादल-बादल सिहरे॥
कौतुक मन मे यूँ उमडे,
कि सारा सावन सिहरे॥
सावन झरा,
झर पड़ी मधु बतियाँ।
कोंपल-कोंपल सिहरी,
सिहरी, सारी रतियाँ॥

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर एहसास।बहुत बढिया रचना है।

राकेश जैन said...

shukriya Ji,