किसी की पगडी रस्म होगी,
किसी की जायदाद,
कोई सच्चे आलापों मे,
कोई झूठे आंसुओं मे,
कोई उदाहरणों में,
मुझे खोजता रहेगा॥
वसीयत के कागजों पर,
दस्तखत का कालम,
खाली तो नही!!
असली जद्दोजहद,
तुम्हारे लिए ,
यही एक होगी॥
( कृमशः )
किसी की पगडी रस्म होगी,
किसी की जायदाद,
कोई सच्चे आलापों मे,
कोई झूठे आंसुओं मे,
कोई उदाहरणों में,
मुझे खोजता रहेगा॥
वसीयत के कागजों पर,
दस्तखत का कालम,
खाली तो नही!!
असली जद्दोजहद,
तुम्हारे लिए ,
यही एक होगी॥
( कृमशः )
प्रिय जनों !
मरना तो शाश्वत सत्य है, पर हमारी कुछ अवधारणाएं, कर्म पुंज बन कर हमारे साथ चलती हैं।
मेरे मरने के बाद विषय के अंतर्गत जो मैं लिख रहा हूँ वो कितना पसंद किया जाएगा, मेरे लिए महत्वपूर्ण तो है, किंतु इस बात से अधिक श्रेयष्कर नहीं की यह विषय पाठकों द्वारा कितना समझा जाएगा॥
लीजिये, लुत्फ़ उठाइए मेरे एक और विचार का,
"यथाक्रम-यथावत"
सूरज सो कर उठेगा,
लालिमा आँखों मे लिए,
लाल-लाल॥
चन्द्रमा भी,
शीतला का,
लिए तिलक भाल,
अपना क्रम रख,
कदम ताल॥
तारे मगर अनंत हैं,
उन अन्तानंत मे,
एक और तारा होगा॥
आदमी की दुनिया मे,
रिक्ति, थोडी हो,
या बहुत,
आसमान के भाल पर,
नया एक तारा होगा॥
कृमशः)
मेरे मरने के बाद॥
दोस्तों, प्यार का एहसास मानव के जीवन पथ मे एक नई जीवन गाथा लिखता है, पर ये भी एक मोह पाश ही है,
एसी ही मेरी काल्पनिक प्रेयसी जो नही है अब, थी क्या ?? ये मत पूछिये, प्रासंगिक नही है॥
मेरे मोह की गाथा सुनिए, लीजिए पेश है पांचवा पायदान ,
" मेरा मोह- तुम"
तुम न हो कर,
मेरी जिंदगी को,
करती हो वीरान,
मरघट॥
और यादों मे,
आ- आ कर,
करती हो,
कपाल क्रिया॥
तुम आज,
दूसरो की दुनिया ,
हो कर मुझे,
जलाती हो॥
और मेरी ही,
मजबूरियों की
अश्रु गंगा मे,
मुझे बहाती हो॥
सब कुछ ,
कर दिया, करती हो,
क्या ? अलग होगा,
मेरे
मरने के बाद॥
(कृमशः )
मेरे मरने के बाद,
क्रम को और आगे बढाते हुए लीजिए पेश है मेरी इस श्रृंख्ला कि एक और रचना,
"अन्तिम यात्रा "
जाने कांधे किसके होंगे,
मेरी मिटटी कि अर्थी में,
जाने कौन जलाएगा,
मेरा झूठापन ,
आग लगा कर अर्थी में,
कौन कपाल क्रिया करेगा,
कौन लगायेगा फेरे॥
मैं तो बीत चुकूंगा तभ तक ,
फिर साथ रहा क्या, इस जग का मेरे॥
व्यवसाय यही था जीवन जब था,
संबंधों मे भेद पाटना ,
कहना कुछ को बहुत पराया,
कुछ को जतलाना ये मेरे॥
आँख मूंदने पर सब आए,
जो थे बहुत पराये कल तक,
या जिनको कहता था अपने- मेरे॥
भेद दृष्टि का ,
लेकर जाना नही भलाई मेरे साथी,
तुम मुक्तिपथ मे मुझे छोड़ कर,
क्षमा ह्रदय से करते जाना ,
निर्विकल्प मे विदा ले सकूं,
जीवन का न हो फिर दोहराना॥
(कृमशः)
और भी बहुत कुछ मेरे सोचे अनुरूप लिखूंगा अगला पायदान है "दाह संस्कार" ।
मेरे मरने के बाद,
प्रिय जनों ! श्रृंख्ला को आगे बढाते हुए आपके लिए एक नव कविता प्रेषित कर रहा हूँ, मेरी इस श्रृंख्ला के सच शायद आपने भी अपने चारों ओर देखे हों , दाबे के साथ नही कहूँगा , क्यूंकि मृत्यु से जुड़ी हुई घटनाओं को कौन कितने करीब से देखता ,ये कहा नही जा सकता ॥
चलिए मैं कोशिश करता हूँ ,आपसे कुछ कहने का,
उन्मान है ,
"मानवता "
पड़ोसी,
तंग हाल ,
कंजूस,
कैसा भी हो !
पर उसे,
हमारे सारे ,
रिश्ते दारों को ,
उसके ख़ुद के ,
फ़ोन से
ख़बर लगाना
कितना !
कष्टप्रद होगा ??!!
(कृमशः)
अगला पायदान है - अन्तिम यात्रा, जुरूर आइये मेरे ब्लॉग पर॥
दोस्तो ! अक्सर अपनी मृत्यु के बारे मे बात करने को अपशकुन कहा जाता है, पर मैं मानता हूँ ये जीवन उसी महोत्सव कि एक तैयारी है फिर इस पर सोचने, बात करने मे अपशकुन कैसा, ये तो हकीकत को समझने का एक प्रयास है... मैं अब आपसे कुछ ऐसी ही कवितायें कहूँगा जो मृत्यु के बाद के सच से जुड़ी है, हाँ ! मेरी मृत्यु और उससे जुड़े सच, कुछ कड़वे -कुछ मीठे सच,
आप सभी इसमे अपने लिए भी कुछ सच तलाश सकते हैं... वरना ये मेरा सच तो है ही ! साथ ही एक कयाश भी है कि क्या-२ हो सकता है -
"मेरे मरने के बाद
इस श्रंखला की पहली रचना,
(होगी नई शुरुआत आगे की )
सुई मे धागा पिरोने के बाद,
इंजन मे तेल पहुँचने के बाद,
बर्तन के तप चुकने के बाद,
क्या होता है ?
होगा वैसा ही कुछ,
मेरे बाद॥
क्यूंकि मैं पहुँच जाने का नाम नही हूँ,
क्यूंकि मैं रुक जाने का नाम नही हूँ ..
गतिवत हो जाना, गति पा लेना,
क्रम बदल जाए पर,
नियति पर हो ध्यान॥
ये ही है मेरा आगाज़,
मेरा अंदाज़,
सोचो क्या होगा ??
मेरा ! तेरा ! सबका !
कब ??
मेरे मर जाने के बाद ॥
होगा नव आगाज़॥
(कृमशः)
आशा के दीप जलाए थे,
मेरे जीवन मे आकर,
आशा के रंग सजाये थे ..
मैं तो रह लेता था ,
अंधरे कमरे मे घुट कर,
तुम ही हाथ पकड़ कर एक दिन,
मुझको बाहर लाये थे॥
तुमने ही तो आ कर मुझ तक,
आशा के दीप जलाये थे॥
मैंने तो रोका था तुमको,
अपने घर के बाहर ही,
पर आकर अन्दर तुमने ही,
सुंदर गीत सजाये थे॥
तुमने ही तो आ कर मुझ तक ,
आशा के दीप जलाए थे॥
मैं तो रो लेता था,
अपने घुटनों पर सर रख के,
पहली बार यहाँ आकर,तुमने ही!
अश्को पर प्रतिबन्ध लगाये थे,
तुमने ही तो आ कर मुझ तक,
आशा के दीप जलाये थे॥