Sunday, May 24, 2009

कुछ क्षणिकाएँ

आइए ज़िन्दगी के कुछ इत्तेफकों की बात करें,
उन्मान है , sorry!
मैंने उससे पूछा!
उसने मुझसे कुछ कहा??
इससे पहले वो कुछ कहता,
मैंने उससे कहा,
मुझे लगा जैसे आपने कुछ कहा॥
इस पर वो कुछ कहता।
मैंने फिर उससे कहा,
कभी-२ हो जाता है॥
उसने कुछ कहने के बजाय,
मुस्कुरा दिया,
ऐसा भी होता है॥
कभी-२ sorry!

चाँद को लेते हैं, कभी मामा तो कभी सनम, कभी इसका कभी उसका, कैसे ??? लीजिए बताता हूँ,
आज चौदहवी का,
कल पूनम का ,
कितना बेवफा है,
किसी एक का हो न सका॥
आफ़ताब !
वो दाग है,
ये दिलनशीं,
या पड़ गईं हैं झुर्रियां!
उम्रदराज हो कर भी,
क्यूँ बदनाम होना चाहते हो॥


अब एक रोमांटिक क्षणिका !!
तुमने अन्दर आने का पूछा !
मैंने दी अनुमति!!
मगर फिर भी,
उतना अन्दर,
न आ सकी,
जितने अन्दर तक,
आने के लिए ,
मैंने दे दी थी अनुमति !!



Sunday, May 10, 2009

मेरी माँ !!!


मातृत्व दिवस की शुभ युति पर आये माँ की स्तुति करें। उनका गुण अनुवाद करें॥

आज सुबह जब दैनिक भास्कर अख़बार उठाया तो पाया की , बहुत कुछ लिखा गया है, और बहुत ही संवेदनात्मक लिखा गया है, मन हुआ हम भी माँ के बारे मे लिखें, कुछ कहें माँ के लिए... अपना कहें उससे पहले अख़बार मे जो पढ़ा और मन बना उसकी बात करते हैं,

मुनव्वर राणा का ashaar है,

मुनव्वर माँ के आगे, yun कभी खुल कर मत रोना,

jahan buniyad हो, इतनी nami achchhi नही होती॥

आँखें नम हो गई,

nida fazali sahab भी क्या कहते हैं ,गौर kariye-

besan की saundhi roti पर khatti chatni जैसी माँ,

याद आती है chauka baasan,chimta fukni जैसी माँ॥

बीवी,बेटी,बहन,padosan,thodi-२ si सब मे,

दिन bhar एक rassi के ऊपर chalti natni जैसी माँ॥

इसके अलावा भी , Chndrakant devtaale,विष्णु naagar,Manglesh Dabraal,राजकुमार kesvani,leeladhar mandloi जैसे siddh hast लोगो ने माँ की स्तुति मे कोई kami नही rakhi,

इसके अलावा भी जितना जो भी chhapa, kafi sparshi lagga॥

इतनी सुंदर baton को पढने के बाद, मेरा मन koutuk करने लगा की वो ऐ सब किस से कहे, तो मैं आ गया, इस peepal के नीचे॥

jahan हम सब जमा है,

माँ दूर है, पर pal-२, विचार मे रहती है,

kehti है, क्या khaya , सुबह से ??

मैं, कहता मन ही मन, माँ, bhukha hun,

अभी नही kia नाश्ता,

वो हो jati है shunya, aankho मे bhar दो aansu,

pallu से paunchh लेती है, khaara pan,

पता है उसे, कितना namkeen पसंद है bete को॥

drudhtaa से puchhti है, kyun, laaparvahi॥

वो puchhti फ़ोन पर , कैसा चल rahaa है सब,

जान कर भी, की सब ruka हुआ है, उसके बिना॥

ehsaas dilati है, की, rukna नही है zindagi, किसी भी तरह॥

abhav से ऊपर भी होगी baten एक दिन।

kahti है माँ, और फिर paunchh लेती है pallu से aansu।

pankha nhai उसके, पर मन मे parvaaz बहुत हैं,

वो आ कर sahla jati है, tab-२ जब-२ nibatti है, chauke से,

और jhaank कर देख jati है, tab, जब मे soya हुआ होता hun,

कई bar देखा है सुबह,कोई dhank जाता है chadar ,

रात की badhi हुई shardi-garmi के mutabik॥

उसकी बहुत ichchha है, मेरा घर हो बड़ा sa इस शहर मे,

shadi हो, मेरे bachche हों, वो सब मेरे लिए जुटा देना chahti,

और हो जाना chahti बहुत खुश॥

जब-२ मैं बढ़ता hun एक भी paydaan,

वो paunchh कर दो bund aansu pallu से,

lapet लेती है मुझे, aanchal मे,

मेरी माँ को पता है, की मुझे कितना namkeen पसंद है॥

मैंने माँ के लिए likhi कुछ और कवितायें ब्लॉग मे post kee हैं, अगर आप पढ़ना चाहते हैं तो zurur नीचे likhi link को click करें।

http://29rakeshjain.blogspot.com/2008/05/blog-post_11.html

http://29rakeshjain.blogspot.com/2008/05/blog-post_5529.html

http://29rakeshjain.blogspot.com/2008/05/blog-post_10.html

takniki khamiyon से कुछ कमी है , post के proper visualization मे, kshama करे, पर मैं इस post मे देर नही करना चाह रहा krupya, मेरी mano दशा को समझें.

Sunday, May 3, 2009

कागज़ की गाय

पढ़ने वालों के लिए एक विचार केंद्रित कविता, जो आधुनिकजीवन शैली के बारे में आपसे एक सच बोलेगी॥
शीर्षक है, कागज़ की गाय-
गौर करियेगा-
कागज़ पृष्ठ से, मढे,
घृत के डिब्बे,
को ला कर,
अपने बर्तन मे ,
जब उडेला और,
फेंका वह रिक्त पात्र
बच्चे ने अकस्मात् ही पूछा,
माँ! यह देखो गाय,
माँ! गाय को यहाँ क्यूँ बनाया॥
गाय तो दूध देती है,
तब क्या, ! कागज़ की गाय,
घी देती है॥
माँ ने सुना , हँसा !!
और बस बताया,
की नहीं बेटा,
दूध से ही घी बनता है॥
पुनः जिज्ञासा !!! कैसे ??
यह तो माँ को भी नही पता !!:)
क्यूंकि उसे तो गौरव है,
आधुनिक माँ होने का, जिसे
उपलब्ध होता रहा है, सदा,
कागज़ की गाय का घी।
और प्लास्टिक की गाय का दूध,
इस बड़े शहर में॥