माँ के लिए लिखे काव्य संकलन पर नज़र दौडाई तो लगा, kyun न ये एक वास्तविक सी कविता आपसे बांटु -
पंच्छियो ने सीखे थे,
चहकने के लिए शब्द,
माँ से॥
बड़े प्यार की बातें सीखी,
उन्होंने उड़ना सीखा ,
माँ से॥
शिकारी बिल्ली से बचना सीखा,
savdhani से दाना चुगना सीखा,
माँ से॥
उन्होंने घोंसला बुनना सीखा,
दाना जोड़ना सीखा,
माँ से॥
और अब , सीख कर यह सब,
उन्होंने बनाया,
अलग घोंसला,
अलग जीवन,
कहा अलविदा,
जो न सिखाया था माँ ने,कभी॥
कह दिया माँ से॥
10 comments:
इस संसार की कड़वी सच्चाई भी आपने कितनी ही सहजता से पेश कर दी। बि्लकुल सही मां ने कभी अलविदा कहना तो ना सिखाया।
बहुत ही यथार्थ रचना । सदा सत्य। चंद पंक्तियों में जीवन की सच्चाई कह गए आप। बहुत ही उत्तम विचार।
कठोर किंतु सत्य..
***राजीव रंजन प्रसाद
बहुत बढ़िया. पढ़कर अच्छा लगा.
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आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं, इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.
एक नया हिन्दी चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरु करवायें और हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें.
यह एक अभियान है. इस संदेश को अधिकाधिक प्रसार देकर आप भी इस अभियान का हिस्सा बनें.
शुभकामनाऐं.
समीर लाल
(उड़न तश्तरी)
kya baat hai rakeksh.... yathartha hi likha tumne...badi hi samvedanshil kavita
सुंदर और सच्ची रचना ।
Dr, Praveen jee, Prabhakar ji,rajiv g,priya sameer ji, Mamta g, aur pujya kanchan di, ap sab ka vaicharik sambal is tarah se milta rahe bas yahi apeksha hai..
बहुत प्यारी और यथार्थ को उजागर करती रचना.
सही कहा अलविदा कहना तो कोई माँ नहीं सिखाती पर नियति यही है कि बच्चे अपने आप सीख लेते हैं। अच्छी रचना..
मार्मिक, भावप्रधान और शिक्षाप्रद।। माँ कभी अलविदा कहना नहीं सिखाती।
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