Sunday, March 8, 2009

होली की ठिठोली !!



होली की ठिठोली !!



जब मैंने अपने प्रिय के ,


कोमल कपोलों पर गुलाल लगाया।


तो उसका चेहरा गुस्से से,


तमतमाया!!!


उसने पलट कर मुझे एक चांटा लगाया॥


मेरे चेहरे पर लग गई,


उनकी उँगलियों की लाली।


उसने दी गाली,


तो भी हमने बात सम्हाली॥


हमने कहा प्रिय ! तुम ठीक किए,


मैं समझ गया बात तुम्हारी,


तेरे हाथ थे रंगों से खाली ,


इसीलिए तुमने इस तरह ,


मुझे गुलाल लगा ली॥


पर उसकी थी सौगात और भी निराली,


अचरज पैदा करने वाली,


बोली !! पानी की है बदहाली,


जिस वजह से मैने ,


तुम्हे रंगने की,


ये तरकीब निकाली....



होली है !!!



5 comments:

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर ...

कंचन सिंह चौहान said...
This comment has been removed by the author.
कंचन सिंह चौहान said...

संभल के भईया घर में अब दो दो भौजाईयाँ हो गई है, रंग अधिक ना चढ़े ....! कुछ अपनी वाली के लिये भी संभाल के रख लेना :) शुभाशीष..!

श्रद्धा जैन said...

Holi ki subhkamanye

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

राकेश भाई साहब,
आपको सपरिवार
होली की मँगल कामनाएँ !