कुछ कहूँ....?
Sunday, March 8, 2009
अतुकांत कविता के लिए,
मित्रो !
अफ़सोस होता है किमैं इस सतरंगी दुनिया से लगातार जुडा नही रह पाता, शायद आपका निरंतर स्नेह मेरे भाग्य कि किसी कमी के चलते अंतरालों मे विभक्त हो जाता है...
मैं आज एक कविता पर कविता कह रहा हूँ,
अतुकांत कविता के लिए,
कविता है, यह।
कितनी तुक है ,
जीवन मे,
अब ॥
फ़िर भी, सार तो है,
कुछ-कुछ।
कविता में भी,
रस है,
सार है,
पर तुक नही !!।
क्यूंकि, वह उपजी है,
सार भरे,
किंतु तुक से
परे,
अभाषों से ॥
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