होली की ठिठोली !!
जब मैंने अपने प्रिय के ,
कोमल कपोलों पर गुलाल लगाया।
तो उसका चेहरा गुस्से से,
तमतमाया!!!
उसने पलट कर मुझे एक चांटा लगाया॥
मेरे चेहरे पर लग गई,
उनकी उँगलियों की लाली।
उसने दी गाली,
तो भी हमने बात सम्हाली॥
हमने कहा प्रिय ! तुम ठीक किए,
मैं समझ गया बात तुम्हारी,
तेरे हाथ थे रंगों से खाली ,
इसीलिए तुमने इस तरह ,
मुझे गुलाल लगा ली॥
पर उसकी थी सौगात और भी निराली,
अचरज पैदा करने वाली,
बोली !! पानी की है बदहाली,
जिस वजह से मैने ,
तुम्हे रंगने की,
ये तरकीब निकाली....
होली है !!!
5 comments:
बहुत सुंदर ...
संभल के भईया घर में अब दो दो भौजाईयाँ हो गई है, रंग अधिक ना चढ़े ....! कुछ अपनी वाली के लिये भी संभाल के रख लेना :) शुभाशीष..!
Holi ki subhkamanye
राकेश भाई साहब,
आपको सपरिवार
होली की मँगल कामनाएँ !
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