Saturday, May 10, 2008

मेरी माँ

मेरी माँ, दूर हो कर भी देती है साहस,

सदा चलते रहने की सीख॥

सदा खुश रहने कि प्रेरणा,

और बिखेरती है यादों मे प्रीति॥

मेरी माँ अक्सर मेरी आंखों मे आती है,

और आंसू बन बह जाती है॥

मेरी माँ इस तरह से,

मुझको अक्सर नम कर जाती है॥

मेरी माँ आती है सुबह-२ ,

भावनाओं के जरिये पिलाती है चाय॥

मेरी माँ मेरा खाना पकाने मे हाथ batati है,

मुझे बगल मे baithatee aur परोसकर खिलाती है॥

मेरी माँ कितनी अच्छी है,

जो दूर हो कर भी बिलकुल करीब रहती ॥

4 comments:

राजीव रंजन प्रसाद said...

संवेदनशील रचना...बधाई स्वीकारें।


***राजीव रंजन प्रसाद

शोभा said...

सुन्दर अभिव्यक्ति।

राकेश जैन said...

shukriya..mere lie prathna karie ,man ki esi nirmalta bane rahe..

कंचन सिंह चौहान said...

मेरी माँ अक्सर मेरी आंखों मे आती है,
और आंसू बन बह जाती है॥
मेरी माँ इस तरह से,
मुझको अक्सर नम कर जाती है

sach me nam hi kar diya rakesh