Saturday, May 10, 2008

माँ

aaj से सात साल पहले जब पढ़ने घर से निकला tabhi का एक unmaan है ये कविता..

माँ ने कहा है ,खोजना सच॥

खूब पढ़ना और, बनना सफल आदमी॥

समय पर रोटी खाना,

भूखे मत सोना,

घर कि चिंता मत करना॥

मैंने मौन हो कर सुना,

मुस्कराया और चला आया॥

कैसे कहूँ माँ से-

मुश्किल बहुत है खोजना सच ,

पढ़ना और बनना आदमी॥

समय पर तो माँ खिलाती है रोटी,

यहाँ तो भूखा सोना अनिवार्य है॥

रही घर कि चिंता , तो क्यों न हो !?

क्या इस घर के अलावा, कहीं कुछ है,

जो मेरा है॥

यही सच है, माँ तेरी दुआ मेरा साथ देगी॥

तकदीर बदलेगी,

देखना तेरा बेटा सफल आदमी बनेगा,

जब तक तेरा सिर गौरव से न उठे,

चैन की साँस नही लेगा॥

5 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया...बधाई.

Dr Parveen Chopra said...

आप ने भी आज इस पोस्ट के बहाने अपनी प्यारी मां के सामने अपना भारी दिल खोल ही लिया ।खुश रहें। हल्कापन महसूस हो रहा है ना,दोस्त !!

mehek said...

bahut hi badhiya,sundar bhav

राकेश जैन said...

aap logo se sarahna milti hai to bahut achchha lagta hai..

कंचन सिंह चौहान said...

ye kavita jab tumne orkut par dali thi tabhi mujhe bahut sundar lagi thi... fir ek baar
कैसे कहूँ माँ से-
मुश्किल बहुत है खोजना सच ,
पढ़ना और बनना आदमी॥
bahut sundar