Saturday, February 22, 2014

गाओ सप्तक, धड्को धकधक

इत्तेफाक होते रहेंगे,
ज़िन्दगी चलती रहेगी 
सब कुछ चले मन के मुताबिक 
सोचने से कुछ न चलेगा। 

रास्ते पथरीले हों या 
रास्ते सुगम सहज हों 
हौसले मे चलना हो तो 
मंजिलों पर जा मिलेगा। 

कौन था जो न चला हो
और पहुँचा हो शिखर तक
केवल वो जो मान बैठे
मैं पहले ही पहुंचा हुआ था।

बात बेमानी भी नहीं है
सोच लो तो ये भी सच है
तू जहाँ पहुंचा हुआ है
कोई उस तक दौड़ता है।

हर पथिक का है नजरिया
हर पथिक की अपनी दुविधा
सत्य को जो खोज लेगा
वही इससे पार चुकता।

सहज न तो रास्ते हैं
न सहज चलना निरंतर
ठहर कर मन को मनाना
और भी है कार्य दुर्गम

कुछ भी नहीं है नियत वैसा
सोचा जैसा, देखा जैसा
होना अचंभित, चकित होना
नहीं हल है ज़िन्दगी का

बस चला चल,
लहर जैसे बिना सोचे
चलती आती
और खोती खुद को खुद में
अंतस मना में मौज खाती

डूब जाती, तैर जाती
और किनारों को बताती
रे कठिनतर, कठोर पत्थर
मुझ निर्मला से करो प्रणय

घुलना सीखो , मिटना सीखो
तैरना और, डूबना भी
आई चलकर इसलिए हूँ
चलना निरंतर है मयस्सर

वरना मैं उसकी गोद में थी
जो है बृहत , बहुतों की मंजिल
मेरे साहिल, छोड़ जिद (कठोरपन),
करदे समर्पण , मौन क्यूँ हो.

गाओ सप्तक, धड्को धकधक
थाप दो , बोलो छप -छप
मुस्कुराओ , तैर जाओ,
करदे समर्पण, करदे समर्पण

-राकेश

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