Sunday, May 25, 2008

भारत माँ की, भारतीय बेटी॥

मैंने कर लिए, बारह दर्जे पास ॥
अव्वल आकर,
पर आज, मेरी पहचान
मेधावी छात्रा न हो कर,
हो गई है,
युवा देहलीज पर,
दस्तक देती,
भारत माँ की ,
भारतीय बेटी॥
कर्तव्यनिष्ठ पिता की ,
जिम्मेदारियां भी जैसे,
उभर आई हैं यकायक॥
रिश्तेदार आ-आकर
माँ-बावा से करने लगे हैं,
कन्फुसियाँ॥
और माँ- बावा भी,
रोज़ रात मेरे सोने के बाद ,
गिनते हैं रुपये,
कनस्तर मे जमा-
रकम॥
माँ कहती है रोज़,
जैसे भी हो इस बरस तो,
करने ही होंगे ,
बेटी के हाथ पीले॥
मैं करवट बदल
तकिये मे छिपाती हूँ मुह ,
और अपनी प्रतिभाओं को ,
बहाने कि कोशिश ,
आंसुओं के जरिये ॥
और ख़ुद को मौन रह कर
समझाने कि कोशिश,
मध्यम वर्गीय परिवार मे
बेटी होना ऐसा ही एक क्रम है॥
जिसे आज से तकरीबन
अठारह बरस पहले ,
मेरी माँ ने निभाया व आज मुझे ,
निभाना होगा !!
मौन रह कर ॥
क्यूंकि ये संस्कार

माँ के दूध ,
और पिता के खून,
के जरिये मेरे मुख पर
पड़ गए हैं।
बंद ताले की तरह॥!!

Friday, May 16, 2008

क्षणिकाएँ

१) योग्यता के आभाव में,,

मैं कैसे दूँ उन्हें !

आमंत्रण।

कहते हैं,

शेरनी का दूध रखने को,

सोने का पात्र चाहिए॥

मेरी लकड़ी कि कठोती ,

पात्रता के आभाव मे ,

मौन हो गई है,

आहिस्ता से॥

२) मैं समझा नही

उसे, या

वो समझे नही

मुझे॥

नहीं पता,

पता है तो सिर्फ़ यह,

कि कहीं न कहीं

समझ का फर्क है॥

३) दिल.

कुछ एक ऐसा हैं,

जिसे टूटने पर

रखा नही जाता ॥

कुछ एक ऐसा है

जिसे टूटने पर

फेंका नही जाता॥

कितना फर्क है,

जिस्म के भीतर ,

और जिस्म के बाहर ,
दुनिया में॥

Sunday, May 11, 2008

अलविदा,कह दिया माँ से॥

माँ के लिए लिखे काव्य संकलन पर नज़र दौडाई तो लगा, kyun न ये एक वास्तविक सी कविता आपसे बांटु -
पंच्छियो ने सीखे थे,
चहकने के लिए शब्द,
माँ से॥
बड़े प्यार की बातें सीखी,
उन्होंने उड़ना सीखा ,
माँ से॥
शिकारी बिल्ली से बचना सीखा,
savdhani से दाना चुगना सीखा,
माँ से॥
उन्होंने घोंसला बुनना सीखा,
दाना जोड़ना सीखा,
माँ से॥
और अब , सीख कर यह सब,
उन्होंने बनाया,
अलग घोंसला,
अलग जीवन,
कहा अलविदा,
जो न सिखाया था माँ ने,कभी॥
कह दिया माँ से॥

Saturday, May 10, 2008

मेरी माँ

मेरी माँ, दूर हो कर भी देती है साहस,

सदा चलते रहने की सीख॥

सदा खुश रहने कि प्रेरणा,

और बिखेरती है यादों मे प्रीति॥

मेरी माँ अक्सर मेरी आंखों मे आती है,

और आंसू बन बह जाती है॥

मेरी माँ इस तरह से,

मुझको अक्सर नम कर जाती है॥

मेरी माँ आती है सुबह-२ ,

भावनाओं के जरिये पिलाती है चाय॥

मेरी माँ मेरा खाना पकाने मे हाथ batati है,

मुझे बगल मे baithatee aur परोसकर खिलाती है॥

मेरी माँ कितनी अच्छी है,

जो दूर हो कर भी बिलकुल करीब रहती ॥

माँ

aaj से सात साल पहले जब पढ़ने घर से निकला tabhi का एक unmaan है ये कविता..

माँ ने कहा है ,खोजना सच॥

खूब पढ़ना और, बनना सफल आदमी॥

समय पर रोटी खाना,

भूखे मत सोना,

घर कि चिंता मत करना॥

मैंने मौन हो कर सुना,

मुस्कराया और चला आया॥

कैसे कहूँ माँ से-

मुश्किल बहुत है खोजना सच ,

पढ़ना और बनना आदमी॥

समय पर तो माँ खिलाती है रोटी,

यहाँ तो भूखा सोना अनिवार्य है॥

रही घर कि चिंता , तो क्यों न हो !?

क्या इस घर के अलावा, कहीं कुछ है,

जो मेरा है॥

यही सच है, माँ तेरी दुआ मेरा साथ देगी॥

तकदीर बदलेगी,

देखना तेरा बेटा सफल आदमी बनेगा,

जब तक तेरा सिर गौरव से न उठे,

चैन की साँस नही लेगा॥

Friday, May 2, 2008

मैं फिर लिखना चाहता हूँ, सुन्दर कविता !!

मैं फिर लिखना चाहता हूँ,

सुन्दर कविता !!

फिर लिखने से पहले,

रुक जाता हूँ ये सोचकर-

क्या तुम फिर वापस आओगी ??

पहनोगी मेरे शब्दों के लिबास,

सुहाग की लाल साड़ी उतारकर ..

क्या sajaogi अपनी मांग मे-

मेरा शब्द सिन्दूर,

सुहाग की लाल रोली निकाल कर ॥

मेरा मन है लिखूं सुन्दर कविता,

तो क्या ! ? तुम फिर वापस आओगी ॥

kya पहनोगी मेरी धडकनों के-

jhanakte नुपुर,

अपनी सुहाग कि पायलें उतार कर॥

मेरी शब्द बाहें पड़ते ही utaarni होगी-

स्वर्ण मेखला,

सुहाग का मंगल सूत्र ॥

क्या तुम वापस आओगी !!?

पूछता है मन,क्यूंकि

में फिर लिखना चाहता हूँ,

एक सुन्दर कविता ..