मैंने कर लिए, बारह दर्जे पास ॥
अव्वल आकर,
पर आज, मेरी पहचान
मेधावी छात्रा न हो कर,
हो गई है,
युवा देहलीज पर,
दस्तक देती,
भारत माँ की ,
भारतीय बेटी॥
कर्तव्यनिष्ठ पिता की ,
जिम्मेदारियां भी जैसे,
उभर आई हैं यकायक॥
रिश्तेदार आ-आकर
माँ-बावा से करने लगे हैं,
कन्फुसियाँ॥
और माँ- बावा भी,
रोज़ रात मेरे सोने के बाद ,
गिनते हैं रुपये,
कनस्तर मे जमा-
रकम॥
माँ कहती है रोज़,
जैसे भी हो इस बरस तो,
करने ही होंगे ,
बेटी के हाथ पीले॥
मैं करवट बदल
तकिये मे छिपाती हूँ मुह ,
और अपनी प्रतिभाओं को ,
बहाने कि कोशिश ,
आंसुओं के जरिये ॥
और ख़ुद को मौन रह कर
समझाने कि कोशिश,
मध्यम वर्गीय परिवार मे
बेटी होना ऐसा ही एक क्रम है॥
जिसे आज से तकरीबन
अठारह बरस पहले ,
मेरी माँ ने निभाया व आज मुझे ,
निभाना होगा !!
मौन रह कर ॥
क्यूंकि ये संस्कार
माँ के दूध ,
और पिता के खून,
के जरिये मेरे मुख पर
पड़ गए हैं।
बंद ताले की तरह॥!!