कुछ कहूँ....?
Wednesday, September 16, 2015
II
निःस्वार्थ।।
यह कहता,
बैठी
रहो
अंदर
आओ
दाना
खाओ।
रोज़
की
तरह
आज
भी
सुनने
से
पहले
गौरैया
उड़
गई।
यह
रोज़
का
क्रम
है
,
वो
जैसे
आती
ही
बस
मुझे
देखने
को
है
-
निःस्वार्थ।।
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