इस बात पर न रख सवाल के अब तक कहाँ रहे...
बस पूछ लो कि अब हाल कैसा है....!?
प्रिय कविता के लिए!
अतीत में, कविता अक्सर ही,
करती थी चुहल,
रंगरेलिओं की पहल।
आकर, छू लेती थी सअधिकार,
और चूम कर अंकित कर देती थी,
उसके दहकते होंठ, मेरे चेहरे पे कई बार।
मेरे पलंग, मेरे सिरहाने में,
मेरी Diary के लिहाफ में अक्सर ही,
दुबक और निकल आती थी;
और रगड़ खाती थी मुझसे, मेरे स्नानागार मे,
छुपकर तौलिए के बीच।
मेरी ज़िन्दगी का सुख-दुःख अक्सर कहती
नज़र आती थी महफिलों के बीच॥
बहुत चाहती थी और शायद अब भी चाहती है,
मगर जब से हुई है मेरी शादी,
वो रखने लगी है अंतर ,
झाँक कर रोशनदान से,
अक्सर ही लौट जाती है - "उदासमना"
घबराती है आलिंगन से,
और हिचकिचाहट में भर जाती है,
देख कर किसी और को उसके और मेरे बीच॥
आज मेरी पत्नी गई थी कहीं बाहर,
और मौका पाते ही आगई है वो (कविता),
एकांत को देने सहारा, और कहने आप बीती,
इस बीच मेरी पत्नी आ चुकी है वापस,
और उसने रंगे हाथ पकड़ ली हैं ये कन्फुसियां॥
वो (पत्नी) मुस्कराकर चली गई है अन्दर,
हमे देकर एक मौन स्वीकृति,
बिताने के लिए कुछ समय साथ-२॥
4 comments:
गज़ब का चित्रण है।
चलो नही पूछती कि " इतने दिन कहाँ थे?
जन्म दिन की शुभकामनाएं देना ज़रूरी नही समझा...
और राखी पा कर भी ज़रूरत नही समझी,
कि बता दूँ
"दीदी तुम्हारी राखी बाँध ली"
या
हमेशा की तरह ले लूँ आशीष.....
चलो ये सब कुछ नही पूछती!
बस पूछ लेती हूँ कि " हाल कैसा है ?"
Very nice..amazing thoughts and presentation :)
Very nice..amazing thoughts and presentation :)
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