Saturday, August 21, 2010

सूरज लौट गया संध्या आने पर..


एक कविता मेरे एकांत जीवन से ....>>>>>>>
सूरज लौट गया,
संध्या आने पर।
अपने घर जाता...
कितनी सांझें बीती,
पर हमको कौन बुलाता
दिन-रात बना क्रम,
चंदा-सूरज,
अपनी-अपनी राह पकड़ते...
हम गतिहीन आसमाँ होकर,
एक जगह पर डेरा करते॥
दूर मातु और पिता योग से,
एकांत निविर मे ढूंढे साता....
मन विचलित पर,
कौंध-२ कर,
प्रश्न एक ही करता जाता,
सूरज लौट गया,
संध्या आने पर,
अपने घर जाता॥
कितनी सांझें बीती पर,
हमको कौन बुलाता॥
रजनीकाल में जुग-जुग तारे,
पाँव पसारे नभ में सोते,
सुबह-सुबह चल देते निजपथ,
पर हमे कौन????
निज पथ बतलाता॥
सूरज लौट गया,
संध्या आने पर,
अपने घर जाता.....
कितनी सांझें बीती पर,
हमको कौन बुलाता...??

6 comments:

Mithilesh dubey said...

सुन्दर प्रस्तुति रही, बधाई ।

vandana gupta said...

अपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (23/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।

Unknown said...

Sir Ji,
Aapki Rachnayen,la-jawab hoti hai,Unme se ye bhi khub hai.

Do lines :- " Aap yuh hi agar aise likhte rahe, Dikhiye ek din book chap jayegi."

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सुन्दर प्रस्तुति ....

कंचन सिंह चौहान said...

याद आई गुलज़ार की नज़्म "शाम होने को है, लाल सूरज समंदर में खोने को है... हम कहाँ जायेंगे ....???"

Unknown said...

wo subah kabhi to aygi