Sunday, June 20, 2010

मौन क्यूँ हो, बोल दो

तुम्हारे लिए!

मौन क्यूँ हो?
बोल दो !
पट खोल दो।
अधरों से कह दो,
कुछ कहें॥
नैनों को कह दो,
झांक लें,
पलकों से बाहर।
कह दो उन्हें,
हमें देख लें॥
केश लहराओ ज़रा,
फैला दो उन्हें,
कि आकर वो हम तक,
चेहरा हमारा चूम लें॥
मैं हूँ, व्याकुल,
चिंतित और आकुल,
अपने ह्रदय से कहो,
आकर हमे वो चैन दे॥
दे दो सहारा,
छू कर मुझे तुम,
हम खो कर स्वयं को,
तुम से तुम्ही को,
छीन लें॥

मौन क्यूँ हो?
बोल दो !
पट खोल दो।
अधरों से कह दो,
कुछ कहें॥

न करें अठखेलियाँ,
अब जान जाती है,
हलक से,
पास आकर बैठ लें,
थोडा हमे वो प्यार दे,,,,

3 comments:

SANSKRITJAGAT said...

सुन्‍दरी कविता


धन्‍यवाद:


http://sanskrit-jeevan.blogspot.com/

vandana gupta said...

सुन्दर भाव्।

राकेश जैन said...

Shkriya dosto!