आइये स्वागत करें ऋतुराज का....
शिराओं में जैसे
खलबला कर दौड़ा हो खूँ,
स्पंदनों ने जकड ली हो,
भागते घोड़ों की टापें॥
साँसे बह रही
अनियंत्रित........
है बसंत, आमन्त्रित॥
मदन की आँखों का रंग
चढ़ गया टेसू के फूल,
बौराए हैं घबराये से
आम के पेड़,
कोयल कुहुक रही
मिष्ट-अमित............
है बसंत आमन्त्रित॥
फुनगी पे चिडयाँ
काम मे हैं लीन,
दुपहरी की वायु में
नशा है संगीन,
चलने से पहले पद हुए
विचलित.......
है बसंत आमंत्रित॥
धरते ही पग अब
उड़ने लगी धूल,
चढ़ते ही दिन के
सजने लगे फूल,
नयी- नयी कलियाँ हुई हैं
कुसमित.......
है बसंत आमंत्रित॥
रात हुई सर्द-गर्म
दिन हुए गर्म-गर्म,
न बिस्तरों को चैन
न चादरों को चैन,
सलवटें पड़ी रही चादरों में
अनवरत.......
है बसंत आमंत्रित॥
काज में न मन आज
न डर है समाज का,
सभी का यही हस्र्त्र
ये काम कामराज का,
हवा बह रही अब हो कर
असंतुलित........
है बसंत आमंत्रित॥
1 comment:
बहुत बढ़िया!
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