एक कविता...
ख्वाहिश न रहे ख्वाहिश,
हकीकत हो सके!
अँधेरी रात मे ताकता,
रहा आसमान..
कि कह दूँ,वोः
जो कह कर ,
तब्दील हो जाये
ज़िन्दगी मे॥
मगर इंतज़ार है,
कि कोई,
तारा टूटे तो सही!
कहते हैं मनौती ,
हो जाती है पूरी
देखने से ऐसा,
पता नहीं था
तब ,जब सोच रहा था-
एक रात,कि तुम
मेरी हो !
और अनायास ही
दिखी थी दो अलग-२
दिशाओं मे छूटती चिंगारियां..
सुबह-२, तुमने स्वतः ही
स्वीकार लिया था प्रेम!
मेरा प्रेम!
मैंने कही थी,
बीती रात की जिज्ञासा,
और चिंगारियों का चित्र,
तब तुमने ही कहा था,
पूरी हो गई न ख्वाहिश,
जो माँगी थी,
तब ! जब एक तारा टूट रहा था।
अब मुझे तुम्हारी बात पर
यकीन बहुत आता है॥
5 comments:
ज़नाब बहुत लाज़वाब लिखते हैं आप
सुन्दर अभिव्यक्ति शुभकामनायें
waah .........bahut hi sundar bhav...........badhayi.
ख्वाहिश न रहे ख्वाहिश,
हकीकत हो सके!
अँधेरी रात मे ताकता,
रहा आसमान..
कि कह दूँ,वोः
जो कह कर ,
तब्दील हो जाये
ज़िन्दगी मे॥
आमीन....!
shukria...
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