एक कविता...
ख्वाहिश न रहे ख्वाहिश,
हकीकत हो सके!
अँधेरी रात मे ताकता,
रहा आसमान..
कि कह दूँ,वोः
जो कह कर ,
तब्दील हो जाये
ज़िन्दगी मे॥
मगर इंतज़ार है,
कि कोई,
तारा टूटे तो सही!
कहते हैं मनौती ,
हो जाती है पूरी
देखने से ऐसा,
पता नहीं था
तब ,जब सोच रहा था-
एक रात,कि तुम
मेरी हो !
और अनायास ही
दिखी थी दो अलग-२
दिशाओं मे छूटती चिंगारियां..
सुबह-२, तुमने स्वतः ही
स्वीकार लिया था प्रेम!
मेरा प्रेम!
मैंने कही थी,
बीती रात की जिज्ञासा,
और चिंगारियों का चित्र,
तब तुमने ही कहा था,
पूरी हो गई न ख्वाहिश,
जो माँगी थी,
तब ! जब एक तारा टूट रहा था।
अब मुझे तुम्हारी बात पर
यकीन बहुत आता है॥
Saturday, November 28, 2009
Tuesday, November 10, 2009
खुदा.देवता.वाहेगुरु.और GOD
एक कविता अचानक ही फूटी, पता नही कहाँ से, पर सच के करीब लगी, गौर करियेगा,
एक पीर अपनी दरगाह से
बाहर निकला तो पाया
सामने दरगाह के,
मन्दिर है एक बड़ा॥
चल कर पहुँचा वहाँ,
पर नही मिला कोई देवता,
सुनाई दी आती हुई पास से,
कुछ आवाजें , अट्टहास,
और ठहाके॥
आगे बढा तो मन्दिर की,
दीवार से ही लगा था ,
एक गिरजा,,
जहाँ पर क्राइस्ट के साथ
बैठा हुआ था देवता॥
पीर को देखते ही उसने कहा,
आइएगा भाई सा ,
कैसे निकलना हुआ!
पीर कहने लगा,
आज गुरूद्वारे पर भीड़ थी,
सोचा वो मित्र तो आने से रहा,
इस तरफ़ को रुख किया,
तो मन्दिर बड़ा सा दिख पडा॥
क्राइस्ट ने इस पर कहा,
अच्छा बहुत तब ये हुआ,
इस बहाने मिल लिया,
बरना ये आदम जात ने,
बांटा हमे है इस कदर,
की इनकी जिदों के वास्ते,
तू है खुदा,ये देवता,
मैं GOd हूँ ,और वो,
वाहे गुरु हो रह गया॥
एक पीर अपनी दरगाह से
बाहर निकला तो पाया
सामने दरगाह के,
मन्दिर है एक बड़ा॥
चल कर पहुँचा वहाँ,
पर नही मिला कोई देवता,
सुनाई दी आती हुई पास से,
कुछ आवाजें , अट्टहास,
और ठहाके॥
आगे बढा तो मन्दिर की,
दीवार से ही लगा था ,
एक गिरजा,,
जहाँ पर क्राइस्ट के साथ
बैठा हुआ था देवता॥
पीर को देखते ही उसने कहा,
आइएगा भाई सा ,
कैसे निकलना हुआ!
पीर कहने लगा,
आज गुरूद्वारे पर भीड़ थी,
सोचा वो मित्र तो आने से रहा,
इस तरफ़ को रुख किया,
तो मन्दिर बड़ा सा दिख पडा॥
क्राइस्ट ने इस पर कहा,
अच्छा बहुत तब ये हुआ,
इस बहाने मिल लिया,
बरना ये आदम जात ने,
बांटा हमे है इस कदर,
की इनकी जिदों के वास्ते,
तू है खुदा,ये देवता,
मैं GOd हूँ ,और वो,
वाहे गुरु हो रह गया॥
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