क्रम ताल मे आते हुए.... लीजिए मेरे चल रहे प्रयास का अगला सूत्र....
क्रम- मेरे मरने के बाद ॥
उनमान है, अन्तिम यात्रा का सुख !
सत्य स्वरूपी, मृत्यु जब,
महबूबा मेरी होगी,
क्या खूब घड़ी वह होगी !!
क्या खूब घड़ी वह होगी-
जब शयन करेगी काया,
घास-फूस के बिस्तर पर,
जो मखमल से नाज़ुक होगी॥
क्या खूब घड़ी वह होगी....
तान वितान चिर-निद्रा होगी,
आँख बंद जब होगी,
कंधा दे-२ लोग चलेंगे,
ऊँचे-नीचे पथ पर आगे,
मैं लेटा-२ झूलूँगा जब,
शान्ति संगिनी होगी॥
मुंह ढांके मैं श्वेत वसन से,
श्वांस स्वयं की लूँगा थाम,
ठंडे दिल को मौन देख कर,
तकलीफ किसी को न होगी॥
क्या खूब घड़ी वह होगी...
सत्य स्वरूपी मृत्यु जब,
महबूबा मेरी होगी॥
कस कर बाँध रखेंगे देह,
किंचित तकलीफ मुझे न होगी।
मौन साध कर दुनिया से जब,
देह जुदाई लेगी,
क्या खूब घड़ी वह होगी ,
सत्य स्वरूपी मृत्यु जब,
महबूबा मेरी होगी॥
3 comments:
बहुत बढिया रचना.......आपने कविता मे कल्पनाशक्ति और दार्शनिकता का अच्छा समावेश किया है.....आभार
shukriya sharma ji....
सत्य स्वरूपी, मृत्यु जब,
महबूबा मेरी होगी,
यदि मैं गलत नहीं हूँ तो राकेश जी आपकी सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक होगी यह। जो आपको भी इतनी ही पसंद होगी।
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