मित्रो ! recession का दौर जो बाज़ार मैं आया है उसका दर्द वही जान सकता है जो वास्तविकता मे उससे हो कर गुज़र रहा है, मेरी ये पोस्ट ऐसे ही एक ऑफिस से उपजा दर्द है, जिसमे मैंने कई दिलों के अन्दर चल रहे तूफ़ान का वर्णन करने की कोशिश की है॥
आशा है आप सभी को सटीकता का एहसास ज़ुरूर होगा॥
आइए आपको ले चलते हैं एक ऑफिस के भीतर जहाँ कुछ सह कर्मी दोपहर का खाना खाने बैठे है जो इस बात से वाकिफ हैं कि उनके कुछ साथी जॉब खो चुके हों, और अब उनमे से किसी का नाम आ सकता है,
दोपहर के खाने मे हुआ ज़िक्र,
क्यूँ नही लिखते वैसा ! कुछ॥
जैसा चल रहा है।
मैं मौन रह जाता हूँ,
कुछ कहूँ तो कैसे ?
जुटाए ही नही थे शब्द ,
कुछ ऐसा कहने के लिए,
जैसा चल रहा है॥
घटा ही नही कुछ ऐसा, जैसा,
घट रहाहै॥
सोचता हूँ! क्यूंकि सोचना
मन की खुराक है!
क्यूँ लौटता हूँ घर,और,
क्यूँ जाता हूँ काम पर।
कल-पुर्जे सा मैं क्यूँ?
लगातार दोहराता हूँ
अब भी सब कुछ,
जब लगता है कि,
इस दोहराव से कोई,
रस छीन लेना चाहता है॥
अब भी निकलता हूँ ,
उसी समय, उसी क्रम मे,
मगर उत्साह उतना नही होता,
होता था जितना ,कुछ ही,
दिनों पहले तक।
सोचता हूँ ! उन सभी चेहरों के बारे मे,
जो कभी अपरिचय से बंधे थे,
फिर परिचय मे बुने गए,
और अब लगने लगे हैं,
जैसे सूत से सूत का रिश्ता!!
वो कैसे मिलते होंगे अपने परिजनों से,
चेहरे पर मल कर सच कि उदासी॥
घर पहुँचते से ही, बच्चे चिपक जाते होंगे,
छाती से,मगर अब बांहे उन्हें भरकर,
छोड़ देती होंगी यक-ब-यक॥
एक गिलास पानी के साथ,
दाग दिया जाता होगा,
एक गोली कि तरह चुभीला प्रश्न,
आज क्या हुआ ? कुछ हुआ आगे?
कभी सर दर्द,
तो कभी बाद मे बात
करने का बहाना सुनकर,
वो ख़ुद ही बदल लेती होगी प्रश्न,
कभी ख़ुद ही पूछते होंगे पहुँच कर घर,
तैयार नही हुई ! बाज़ार जाना था न!!??
वो टाल देती है ज़ुरुरतों को,
परिस्थितियां पढ़कर॥
कह रही थी पिछले ही हफ्ते ,
क्यूँ न चला जाए, किसी हिल स्टेशन पर,
बेचैन कर रही हैं गर्मियां॥
पर आज अचानक ही बदल दिया है,
उसने मौसम का विज्ञान!!
कह उठती है, इस बार कितनी सुखद है,
आँगन के आम कि छांह।
विशेष नही लगती गर्मी!॥
जाने कितनी ही बातें इस प्रबाह में,
बहती हैं,पर मन कचोट कर,
चुप हो जाता है॥
निराशा को करते हैं ,
ढंकने कि कोशिश,
और मुस्कराते हैं, सब,
एक दूसरे को देख कर,
खाने कि टेबल पर॥
देखते हैं आसरों कि उम्मीद ,
इधर-उधर॥
भगवन से भी करना चाहते हैं,
बात इस बारे मे,
कि क्या हमे जमा करने होंगे,
कुछ शब्द लिखने के लिए वैसा,
जैसा चल रहा है,
या वो बस करने ही वाला है,
सब कुछ वैसा ,
जैसा लिखने के लिए हमने,
जमा कर रखे हैं ,
कई-२ शब्द कोष !!