Thursday, October 30, 2008

मैं कर रहा हूँ कोशिश, लिखने की नए तराने॥

मित्रो ! नमस्कार।
हमेशा की तरह, एक लम्बे अंतराल के उपरांत आपसे फिर मुखातिब आपका दोस्त !
एम्.बी.ए के इम्तिहान कि वजह से यह फासला रहा, वर्ना इस दौरे बयार से कौन मुह फेरना चाहेगा॥
क्या खूब कहा है किसी ने हर किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता.....
एक कविता मन मे हिचकोले खाती रही, क्यूंकि आदत जो हो गई है इस महफिल की,

कोशिश कर रहा हूँ, लिखने की नए तराने।
मन हो गया है नदिया, शायद इसी बहाने॥

फूटा है कोई झरना, दिल की किसी सतह से।
जिंदगी मे खुशियाँ, कोई लगा सजाने॥

चम्पई फूल आकर, खुशियों मे हुए शामिल।
मैना आ गई है, अंगना मे गीत गाने॥
कोशिश कर रहा हूँ......

चन्दा है, चांदनी है, रागों मे रागिनी है।
धरती लगी है हंसने , अम्बर लगा हँसाने॥

शुरुआत का हो स्वागत, सबकी है यही ख्वाहिश।
गणपति भी आज खुश हैं, आगाज़ के बहाने॥

माँ शारदा भी आई, तूलिका को लेकर।
मैं कर रहा हूँ कोशिश, लिखने की नए तराने॥
धरती लगी है हंसने, अम्बर लगा हँसाने॥






5 comments:

Anonymous said...

कामना है कि आप नित नए तराने लिखें।

Manish Kumar said...

aapke lekhan mein ye optimism bana rahe !

Udan Tashtari said...

बहुत बढिया.लिखते रहें.

कंचन सिंह चौहान said...

ye sakaratamak koshish karte hi raho..Ashish

राकेश जैन said...

Richa ji, Manish Ji, aur sameer ji, sadar dhanyabad...Kanchan di Pranam ...Hauslafzai ka shukria...