Sunday, February 3, 2008

Mile- Stone

मेरी प्रथम प्रेम अनुभूति के लिए,

तुम हो न सकी मंजिल,
तुम हो न सकी हम सफर,
तुम न हुई, मेरी हम रही॥

ज़िंदगी की अनबूझ राहों मे,
तुम मिली,
पर साथ न चली॥
चलती भी कैसे,
तुम नही थी, मंजिल,
हम सफर,
हम राही,
तुम तो थी,
मील का पत्थर",
उस राह का ही,
जहाँ से निकलते थे,
मेरी मंजिलों के राहे॥
शुक्रिया,
तुमने दिया दिशा बोध,
और मुझे बताई, तय की गई,
और बाकी रह गई दुरीओं का पता,
और दिया पहुँचने के लिए,
चलते रहने की ज़ुरूरत का एहसास॥
मैं खुश हूँ बहुत,
अगर तुम न होती
तो मैं कैसे बढ़ता मंजिलों कि तरफ॥
शुक्रिया- बहुत,
मेरे Mile - stone..