Tuesday, October 23, 2007

सबसे पहले अपने बारे में कह दूँ कविता,
मैं हूँ वो, जो उदय नहीं हुई सविता....
हाँ में जीने से पहले मर लेता हूँ ।
यूँ ही जीवन तय कर लेता हूँ,
जाने किन-किन आघातों से होता ताना-बाना,
कैसे-कैसे योग मिलें ,
जिनसे होता अन्जाना,.....
में वो, शुरू हुआ जो सुबह-सुबह.
और साथ उसी के ख़तम हुआ...
जाने यूँ ही कितनी बार,
जीवन से ये मिलन हुआ,
मैं हूँ आम आदमी जो ,
अक्सर मरता है...
अक्सर ही जो मरघट में
धुआँ -धुआँ करता है......

Monday, October 22, 2007

कवि

कवि स्याही नही,

जिसे बिखेरा गया है कागज़ों पर ,


कवि शब्द है,

स्याही से जिसे उकेरा गया है कागज़ों पर......राकेश