सबसे पहले अपने बारे में कह दूँ कविता,
मैं हूँ वो, जो उदय नहीं हुई सविता....
हाँ में जीने से पहले मर लेता हूँ ।
यूँ ही जीवन तय कर लेता हूँ,
जाने किन-किन आघातों से होता ताना-बाना,
कैसे-कैसे योग मिलें ,
जिनसे होता अन्जाना,.....
में वो, शुरू हुआ जो सुबह-सुबह.
और साथ उसी के ख़तम हुआ...
जाने यूँ ही कितनी बार,
जीवन से ये मिलन हुआ,
मैं हूँ आम आदमी जो ,
अक्सर मरता है...
अक्सर ही जो मरघट में
धुआँ -धुआँ करता है......