यह कविता सिगरेटके शौकीनों के लिए चेतावनी भी है,,,
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मैं धुआं हो गया।
वो मलते रहे उँगलियों मे,
मैं हवा हो गया॥
वो जलाते रहे,
उड़ाते रहे,
बना के गुल रास्ते में ,
मुझको झडाते रहे॥
बदन को पीते रहे,
शेष को,जूते से दबाते रहे।
वो नादान,
बेजान समझते थे मुझे,
मुझे जलाते तो रहे,
खुद को सुलगाते भी रहे।
मैं बुझ कर भी बुझा नहीं,
वो पीकर मुझे बुझे से हैं॥
मैं खाक रह गया हूँ,
या हो गया हूँ धुआं
वो जीते जी रहे नहीं,
वो मरे हुए से हैं॥