मित्रो!
आज काफी दिनों बाद लिख रहा हूँ... इस समय मैं स्वचालित न हो कर वक़्त के प्रवाह मे बह रहा एक जल बिंदु हो गया हूँ।
मैं मध्य प्रदेश का रहने वाला हूँ और अब तक की पढाई और नौकरियां सभी स्वप्रदेश मे चलती रही, ऐसा नहीं कहूँगा के मै भारत का बेटा नहीं हूँ या किसी अन्य प्रदेश से मुझे कोई जुगुप्सा या नफरत है,किन्तु हम जिस लोक संस्कृति और वातावरण मे लम्बे अन्तराल तक रहे हों उससे लगाव हो जाता है और उससे विलग होने मे तकलीफ महसूस करते हैं।
या कहें सामान्य आदमियों की भांति मैं भी हूँ जिसका सुरक्षा कवच उतरता है तो भय मन मे भर जाता है।
खैर आपसे वह बात बांटता हूँ जो अहम् है,और वह है की मेरी सेवाएं कंपनी ने गुडगाँव स्थानांतरित कर दी हैं,
घर भी किराये से ले लिया है,किन्तु अभी ऑफिस ज्वाइन करने मे एक सप्ताह बाकी है, इस सप्ताह मे भोपाल मे ही हूँ,और १२.०४ से गुडगाँव का नियमित रहवासी हो जाऊंगा,
माँ के घर से मौसी का घर बहुत दूर है,देखना है अब मै इस नए पड़ाव पर कितने दिन के लिए आया हूँ, क्यूंकि मंजिल तो यह भी नहीं है॥
बड़ा अचरज होता है, तरक्की के पीछे के वो सच महसूस कर के जो वाकई आपकी कमजोरियों को इंगित करते हैं,घर से दूर होना ,फिर गृह राज्य से दूर होना। पता नहीं आगे क्या है॥
दोपहर के समय की बात है,यानि मेरी ज़िन्दगी का मध्याहन का समय है,मै ३० की आयुवय वाला युवक
अपनी शादी के सपने सजोये (जा को राखे साईंआ मार सके न कोय )एक निर्बाध और सतत जिंदगी मे लय भर रहा था,की तभी वक़्त ने वीणा वापस लेकर guitar थमा दिया। वक़्त शायद आजमाना चाहता हो की मुझे सुरों का ज्ञान है या साधनों का या मे दोनों मे ही तारतम्य बिठा सकता हूँ।
अद्भुत है सब का सब, शहर मे अजनबीपन है, घर मे अकेलापन और काम पर नयी चुनौतियाँ, इसी उधेड़बुन मे कुछ दिन के विराम के बाद आज लिख रहा हूँ।
अपनी दुआओं में मेरे लिए जगह रखना,
मैं पहुँच जाऊंगा, बस इतना भरोसा रखना॥