मित्रो! नव वर्ष की शुभ कामनाओं के साथ इस वर्ष का आगाज़ मेरी आज ही जन्मी इस बिटिया से,
मेरी नई कविता से ......
उन्मान है, सुख और सुख के बीच अन्तर।
क्या है आख़िर ?
सुख और सुख के बीच अन्तर!
मैं निकला हूँ अभी-२
नहा कर गुनगुने पानी से,
कडाके की सर्दी मे ,
सुखद है अनुभूति,
वो नहा रहा है,
ठिठुरे हुए पानी मे,मसोस कर मन!
मैं किराये के एक कमरे मे कर रहा हूँ,
शान्ति से बसर।
उसके पास है है, बहु मंजिला घर ख़ुद का,
पर कहता है - कुछ है जो,
रहने नही देता।
सुख को भी सुख,
होकर भी सुख होता नही हैं॥
मेरे पास जमा के नाम पर है फूटी कोंडी,
और वो रखता है ,
रुपया कोणि-२॥
चिंता बहुत है,उसे ,
इस सुख से वंचित न हो जाऊँ ॥
मैं बड़ा निर्विकल्प सुखी हूँ,
इस तरह की चिंता वाले सुख से॥
मेरी नौकरी है,खतरे मे,
और करने पड़ सकते हैं फांके,
गुजारना होगा समय,
नमक ,प्याज़, रोटी से,
सुख मानना होगा उसी उपलब्ध में॥
वो दिन भर करता है काम,
और कमा कर ला ही पाता है,
uतना सुख , जितना मैं सब
खो jane के bad bachaa paunga ,
शायद...
मन आदी है, उस सुख का,
jisko सुख kahne के lie,
asuvidha से hataa dia है अ",
मन behad bichlit है,
kyunki वो समझ नही pa रहा,
दो muhen tark!!
और असफल है करने me,
अन्तर- सुख और सुख के बीच॥