Monday, March 17, 2008

बसंत Birah

रति के नयन हीरक जड़े,

मन स्वर्ण है, अभिलाष का॥

देखो बसंत की करनी को,

उच्चावचन यह स्वांस का॥

मदन की देखो दशा अब,

नयनो भरी है raktimaa..

बसंत धडके धडकनों me ,

मुश्किल हुआ सम्हालना॥

किस देवता की करें पूजा,

क्या अर्घ्य दूँ,उस पाद me॥

जो देवता,उजियार दे एक दीप,

मन के इस निर्वात men ..

हे ! देवता,यह ऋतू मादक,

कहतi प्रणय के पाठ नित॥

पर priy बैठे अजनबी बन,

मन पता puchhe कर Vinat..