Thursday, January 31, 2008

चूं-चूं

मेरे आँगन मे आती है,
चूं-चूं चिडियाँ॥
मेरे आँगन मे जाने पर,
चिड सी जाती हैं,
उड़ ही जाती हैं,
चूं-चूं चिडियाँ..
मैं कैसे समझाऊ,
मैं अहिंसक,
उसके कृत का,
अनुमोदन करता हूँ,
आखेट नही,
दाना देना मन है मेरा,
साजिश का संदेश नही..
पर जाने क्यों,
वो मुझ पर शक करती हैं..
मेरे आँगन मे जाने पर,
जा उड़ती हैं चूं-चूं चिडियाँ॥
आदमी मिलकर मुझे,
लेते हैं ,रिक्ति से मेरी,
फायदा॥
मैं सीखता हूँ,
खोखले से ,
खोखले को ,
भरने कि अदा॥

जिंदा इतिहास

इतिहास दोहराए नही जाते,
मगर दफनाये भी नही जाते॥
ज़ख्म भर भी गए हों एक बसर,
पर निशान तो, फिर भी मिटाए नही जाते॥

एहसास दर्द का है अभी भी बाकी,
जानने के लिए, ज़ख्म दुखाये नही जाते॥
यूं ही छेड़ देते हो जिक्र मेरे साकी का,
पता है, बहते हुए अश्क छिपाये नही जाते॥

तुम समझकर भी पूछते क्यों हो ??
क्या मेरी तरह तुमसे सवाल दबाये नही जाते ?
मैं भी पूछता हूँ , खुद से रह-२ कर,
क्या आज भी कोई उम्मीद जिंदा है॥
दिल का कहना है कि आइना नही है वह,
और तस्वीर से चेहरे मिटाए नही जाते॥