कुछ कहूँ....?
Sunday, September 9, 2018
Wednesday, December 28, 2016
तो क्या ?
तो क्या ? जो मैं भूल गया दवा लेना।
तो क्या? जो तुम असफल हो गए।
तो क्या ? जो कुत्ता अगर चॉकलेट खा ले।
तो क्या ? अगर मैं खाऊँ डाइट वाली गोली।
तो क्या ? अगर है निम्न रक्तदाब।
तो क्या ? जो मैं गर्भ से हो जाऊं।
तो क्या ?
गूगल में मैंने लिखा बस था what if !
तो क्या ?!
विकल्पों ने सुझा दी एक कविता !!!
पढ़ा, अब आप आजमाइए गूगल,
शायद बन जाये एक और उम्दा कविता।।
Thursday, September 1, 2016
Story # Saturday in a corporate with 5 Days working Culture
It was a Saturday Morning,
We generally Wake-up late by 8:30-9:00 AM. And Clock runs faster than other
days.
It was 10:00 AM when We
could have finished up with News paper & Tea and some plays with kids.
Mobile rang and it was a
transporter who had brought a By Air
shipment from Chennai to Mumbai and yet
not cleared due to some N-form issues ( A Document needs to formalize).
He called me up to arrange
some more documents to present to the authority to get this shipment cleared.
First I had shouted up on
him that Why did he not ask me this yesterday itself as I had given him all the
required documents in previous morning and my central team had confirmed that
assurance received for clearances & delivery by the same evening.
10:15 AM; I could be able to
send required documents to that transporter by E-mail and called-up him back to
ensure the clearance and to deliver it by 12:00 PM to Warehouse at Bhiwandi ( I
was aware that in practical, I am asking the moon, To close with Airport
authority & Then check post of BMC is not that easy in the Mumbai however
all the systems are automated & computerized now). Only pro activeness can
avoid delays which is missing at all levels as I sense nowadays.
This call disturbed me as
some of the business commitments were there to meet by this Stock. I called
first to Business Spoc as deviation was foreseen. It was 10:30 AM.
Just after I called to
Central coordinator to check with who had committed and passed the wrong commitment
yesterday and to share the sensitivity of this transaction to expedite now. But
call remain unattended.
I kept waiting for revert, on
an interval, I called to his manager and briefed the matter and he assured to
get a call back, It was almost 11:30 AM.
Central coordinator called me up perhaps after getting call from his Manager
and assured to check, expedite & confirm back.
It was 12:30 PM; I called-up transporter’s team at Local level if shipment has moved
by now. He was helpless with process and
was waiting in queue with a loaded vehicle and submitted papers. I again called
up to Business spoc to share the status perhaps by 01:00 PM.
All of the family member
were ready by now and were looking if I could start for my routine of bath,
prayer & lunch. I could make it by 2:00
PM and my house maid was staring if I could finish on time as She was
waiting to clean up that room. My home is small so my drawing converts from
dining to kids room & to bed room for noon time.
By 4:00 PM;
Again I called up to the transporter where if his vehicle had released from
airport & found him waiting at check post now. Power cut was first and now
the systems were running slow for two hours at BMC Check post so Vehicles were
in long queue. Not sure about all truths.
Again I called to Central
coordinator if he had received any update by now but remained unanswered. It was 4:30 PM by when again I called
to transporter, same hang on check post, I have asked if officer is ready to clear
on manual basis, He took driver on call where He shared that Manual clearance is
already given but he is waiting for computer receipt. We mutually agree to
clear on manual paper and to collect Computer generated print in return.
Finally Material reached by 5:30 PM at Bhiwandi and now started
to chase customer if He is ready to accept late in the evening as again the
material had to cross another check post. Customer politely said why you all
are worried so much, I will take that on Monday, no hurry. Urgency was in last
three days which already had passed.
Kids had woken up from their
second sleep by now and were staring. My 4 years old son asked humbly, “ Papa
is that same thing has got resolved by now you have been struggling since
morning.” And wife added It’s only one thing in his job gets stuck each
Saturday and sufficient to know in how systemic environment papa works.
I smiled, and took a long
sip of the tea. They are right by their logic but often life is also the same,
sometimes takes multiple efforts for same goal and sometimes doesn’t respond to
our wish as It must have busy on something much urgent.
God bless All!
Tuesday, August 30, 2016
सदैव, शाश्वत और मौन
करों से घिरे हम,
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष।
कोसते सरकारों को,
कभी नहीं सोचते !
लगता है कर
सिर्फ खरीदों हुई
सेवाओं पर,
वस्तुओं के विनमय पर।
बहुत कुछ है मुफ्त
होते हुए अनमोल
माँ का लाड़ , पिता की सीख
मिली है मुफ्त,
इस युग में जब surrogacy
में पैदा हो रहे हैं
बच्चे किराये से
लेकर कोख,
देकर दर भी और कर भी।
कर मुक्त ही क्या
दर मुक्त है श्वांस
नदियों में बहता जल
सुबह की धूप
खलिहानों के फलक
चिड़ियों का कलरव
वो सब अब भी है मुफ्त
जब हैं बहुविकल्प-
बोतल बंद पानी,
ऑक्सीजन cylinder,
विटामिन डी की गोलियां
और एक ही जगह खड़े
रहकर भागते रहने का
आभाष कराने वाली मशीन
जिसमे दर भी है और कर भी।
बहुत लंबी है
फ़ेहरिस्त उन चीज़ों की
जिस पर लगता है कर
प्रत्यक्ष और अप्रयत्क्ष
किन्तु उससे कहीं
और कहने में अशेष
है सूची,उस कृपा की
जो निरत देती रहती है
बिना दर और बिना कर
सदैव, शाश्वत और मौन ।
Monday, May 2, 2016
क्षमा बावा के लिए-
तेरे खोने से बस फर्क इतना है
मैं भी खोया हुआ सा रहता हूँ।।
मैं भी खोया हुआ सा रहता हूँ।।
रास्ते तेरे बिना सब दुर्गम हैं
मैं अब हारा हुआ सा रहता हूँ।।
मैं अब हारा हुआ सा रहता हूँ।।
तेरा जाना जैसे चिराग़ बुझ जाना
मैं अब स्याह अंधेरों में रहता हूँ ।।
मैं अब स्याह अंधेरों में रहता हूँ ।।
मुकम्मल हौसला होता ही नहीं
मैं तेरे दिए सबक सारे पढ़ता हूँ ।।
मैं तेरे दिए सबक सारे पढ़ता हूँ ।।
है कहीं तो आके थाम ले बावा
मैं बिखरा हुआ गुहार करता हूँ।।
मैं बिखरा हुआ गुहार करता हूँ।।
क्षमा बावा के लिए
तप्त सूर्य रश्मि ने आ कर
आर्द्र, नयन से शोख लिया।
तब पथराए नयन कुँज ने
द्रवित ही होना छोड़ दिया।।
आर्द्र, नयन से शोख लिया।
तब पथराए नयन कुँज ने
द्रवित ही होना छोड़ दिया।।
जाने कहाँ भटकती होंगी
अब चिड़ियाँ तेरे कमरे की
झंझावातों की हलचल ने
ठोस ठिकाना तोड़ दिया।।
अब चिड़ियाँ तेरे कमरे की
झंझावातों की हलचल ने
ठोस ठिकाना तोड़ दिया।।
मंदिर के उस कोने में
अब बेहद सन्नाटा पसरा
तेरे जाने भर से बावा
बच्चों ने आना छोड़ दिया।।
अब बेहद सन्नाटा पसरा
तेरे जाने भर से बावा
बच्चों ने आना छोड़ दिया।।
सघन निशा की चंद्र बिंदी को
पौंछ गया एक काला बादल
टिमटिम करते तारों ने भी
नभ पर छाना छोड़ दिया।।
पौंछ गया एक काला बादल
टिमटिम करते तारों ने भी
नभ पर छाना छोड़ दिया।।
पहले सूरज चढ़ जाता था
पूरा पहाड़ कविताओं में
पर ऐसे सुंदर लेखक ने
कलम उठाना छोड़ दिया।
पूरा पहाड़ कविताओं में
पर ऐसे सुंदर लेखक ने
कलम उठाना छोड़ दिया।
तप्त सूर्य रश्मि ने आ कर
आर्द्र, नयन से शोख लिया।
तब पथराए नयन कुँज ने
द्रवित ही होना छोड़ दिया।।
आर्द्र, नयन से शोख लिया।
तब पथराए नयन कुँज ने
द्रवित ही होना छोड़ दिया।।
Wednesday, February 10, 2016
यह समाज आखिर चाहता क्या है ???
रहस्यमय और आपत्तिजन्य प्रेम जो समाज के सरोकारों से परे हो, मर्यादाओं में न बंधने जैसा हो, और जिसे करने में डर सताए फिर भी करने का मन हो, जिसमे एक-दूजे के लिए मर मिटने का जूनून हो और हर एक समय मदमस्त नैनों में डूबे रहने की आकंठ वृत्ति हो, श्रेष्ठ है। सामान्यतया इसके बुदबुदाने की उम्र किशोरवय के शरद के बाद आने वाला यौवन का वसंत होता है। और यहीं से व्यक्ति एक आदर्श नागरिक या आदर्श प्रेमी होने की राह चुनता है, कोई एक ही हो पाता है उत्कृष्ट प्रेमी और अधिकांशतः आदर्श नागरिक ज़्यादा बनते हैं, आदर्श प्रेमी बनने के रस्ते बड़ी अड़चने और हज़ार जोड़ी जूतों का दुःस्वप्न सदा सताता रहता है इसलिए लोग मध्य मार्गी हो कर, कुछ सूखे गुलाब किताबों में लिए कलटी काट लेते हैं।
दूसरा और आदर्श अवसर शादी के रूप में आता है जब वही आदर्श समाज उस दबे हुए रोमांच को पुनः वैधानिक तरीके से पुनर्स्थापित करने का प्रयास करता है और इसी प्रयास से हमारे समाज का संरचनात्मक ढांचा बहुतायत खड़ा हुआ है और ऐसा नहीं है कि इस तरह से सृजित प्रेम में ऊपर लिखे प्रेम आनंद का अवसर कम हो किन्तु आदमी ढूंढता वह है जो हो नहीं सका। किन्तु अभिन्न सत्य है की सामाजिक रीति से हुए विवाहो में इस उत्कृष्ट प्रेम के अनगिनत अवसर आते हैं जो चेतना में प्रेम के उसी अनचाहे डर और उससे परे एक दूसरे पर मर मिटने की चाहत लिए फलसफे से बने होते हैं।
8th Feb मेरी और श्वेता की शादी की पांचवी वर्षगांठ, और हम उपरोक्त प्रेम के अवसर तलाशते हुए अब भी पाये जा सकते हैं, छुपा के जमा किये पैसो से उसने कलाई पर बाँधने के लिए वक़्त का तोहफा दिया है, एक डर तो यह की फिजूल खर्ची पर १० मिनट का भाषण, पैसे छुपाने की आदत पर नैतिकता का पाठ और उस से कहीं ऊपर प्रेम की नूतन अभिव्यक्ति। और चूँकि दो छोटे बच्चे अब हमारे जीवन के प्रसून हैं साथ ही दोनों ही आदर्श समाज की भूमिका निभाने में बेहद माहिर। प्रेम के अवसरों को तलाशना, ताड़ना और किंचित पा भी जाना हो जाता है किन्तु तभी दरवाजे पर घंटी बज जाती है, मन कचोट जाता है अब यह समाज आखिर चाहता क्या है ???
Friday, January 8, 2016
लव लव लव लवेरिया हुआ..
लव लव लव लवेरिया हुआ... नए साल के आगाज़ में जगह-जगह बगीचों में नव युगलों का गलबहियाँ करना शहरों में आम हो चला है। लेकिन ऐसी घटनाएँ कभी-२ वैज्ञानिक पहलुओं पर विचार करने पर विवस करती हैं।
मुझे पता नहीं नाना पाटेकर पर फिल्माए इस गीत में फिल्म राजू बन गया जेंटलमेन के कथा लेखक/ गीतकार ने इस जुमले की अटकल कैसे लगाई किन्तु आज मैं इस के जरिये मेडिकल क्षेत्र की ऐसी खोज की घोषणा करने जा रहा हूँ जो न्यूटन के अविष्कार की तरह महत्वपूर्ण और पेड़ से टपकी हुई है।
यह एक ऐसा तथ्य है जिसके जानने के बाद स्वास्थ्य के प्रति गंभीर व्यक्ति लवेरिया से दूरी बनाना शुरू कर देंगे। विस्मित होंगे, खास तौर पर मेरे मित्र जो नवोदित युवा हैं या इसी उम्र के आस-पास हैं, कदाचित सुकूनमय दांपत्य जीवन जी रहे जोड़े भी इस रोग के गंभीर परिणामों के बारे में जानना तो चाहेंगे क्यूंकि उनके जीवन में भी जब लवेरिया नाम का वायरस अति सक्रिय हो जाता है जो कि अक्सर सर्दिओं और गर्मिओं की छुट्टीओं में फीमेल sentimatia और children requestaform की विचारों के इर्द-गिर्द जमा होने की वजह से होता है और उन्हें घूमने किसी प्राकृतिक स्थल पर जाने को प्रेरित करता है।
चलिए अब मुद्दे की बात बताते हुए आज के अविष्कार को घोषित कर दूँ। (संभवतः आप इसे अपने बच्चों के सिलेबस में निकट भविष्य में ज़रूर पाएँगे ।) तो बता दूँ कि लवेरिया शब्द मलेरिया से उपजा नहीं बल्कि यह मलेरिया बीमारी की प्राथमिक स्थिति है और मलेरिया से पहले ही विद्यमान होता है। जब दो प्रेमी अपनी उत्कंठ आकर्षण वृत्ति के कारण किसी उपवन में घने वृक्षों के नीचे पड़ी बेंच पर नैनों की उथली झीलों में डूबते निकलते हैं तब इन झीलों में लम्बे समय से जमा कीचड़ के समीप मच्छरों का व्याप्त होना स्वाभाविक होता है और ये प्रेमीजन एक दूसरे में संलिप्त लवेरिया में इतने तल्लीन होते हैं की कब मच्छर इनके अंगोपांगों को इतनी जगह चूमते हैं की लवेरिया कब मलेरिया बन जाता है पता ही नहीं चलता। अविष्कार ये भी सिद्ध करता है कि मलेरिया जो जघन्य है स्वास्थ्य उपचारों से ठीक हो सकता है पर यदि प्राथमिक बीमारी लवेरिया एक बार हुई तो कितने ही कैलेंडर बदलें, ठीक नहीं होती और लाइलाज है। नववर्ष आपके जीवन में लवेरिया फैलाये किन्तु सावधान इसे अपने घर में पनपने दें, बागों में बहार के साथ मादा एनोफिलीज़ भी है। .......Happy 2016 !!!!
-राकेश जैन
( भारत वन मुंबई में संध्या भ्रमण के समय उपजा एक व्यंग्य )
-राकेश जैन
( भारत वन मुंबई में संध्या भ्रमण के समय उपजा एक व्यंग्य )
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