Monday, May 2, 2016

क्षमा बावा के लिए-

तेरे खोने से बस फर्क इतना है
मैं भी खोया हुआ सा रहता हूँ।।
रास्ते तेरे बिना सब दुर्गम हैं
मैं अब हारा हुआ सा रहता हूँ।।
तेरा जाना जैसे चिराग़ बुझ जाना
मैं अब स्याह अंधेरों में रहता हूँ ।।
मुकम्मल हौसला होता ही नहीं
मैं तेरे दिए सबक सारे पढ़ता हूँ ।।
है कहीं तो आके थाम ले बावा
मैं बिखरा हुआ गुहार करता हूँ।।

क्षमा बावा के लिए

तप्त सूर्य रश्मि ने आ कर
आर्द्र, नयन से शोख लिया।
तब पथराए नयन कुँज ने
द्रवित ही होना छोड़ दिया।।
जाने कहाँ भटकती होंगी
अब चिड़ियाँ तेरे कमरे की
झंझावातों की हलचल ने
ठोस ठिकाना तोड़ दिया।।
मंदिर के उस कोने में
अब बेहद सन्नाटा पसरा
तेरे जाने भर से बावा
बच्चों ने आना छोड़ दिया।।
सघन निशा की चंद्र बिंदी को
पौंछ गया एक काला बादल
टिमटिम करते तारों ने भी
नभ पर छाना छोड़ दिया।।
पहले सूरज चढ़ जाता था
पूरा पहाड़ कविताओं में
पर ऐसे सुंदर लेखक ने
कलम उठाना छोड़ दिया।
तप्त सूर्य रश्मि ने आ कर
आर्द्र, नयन से शोख लिया।
तब पथराए नयन कुँज ने
द्रवित ही होना छोड़ दिया।।