Friday, November 27, 2015

गीत हमने कहे नहीं,
रागिनी गाई नहीं;
स्वागत में बस एक,
मन ही बिछोना था;
मन को पढ़ लिया,
और तुम आ गई।
अनोखे से जीवन में,
क्रांति है क्षण-२ में ;
साहस के अंतस में ,
स्वप्न एक सलोना था;
हिम्मत को दाद दी ,
और तुम आ गई।
छत जब उधड़ गई,
वो आसमान बन गई ;
वृष्टि ने सूरज संग,
एक बीज बोया था;
बुलबुल ने पेड़ चुना;
चहकने को आ गई।
कहाँ से चले थे और,
कहाँ कदम ठिठक गए;
लड़खड़ाते क़दमों ने फिर,
ताल को सजोया था ;
ताल में तल्लीन हो,
थिरकने को आ गई।
दुर्गम में सुगमता,
लक्ष्य में एकाग्रता;
आशीष की प्रवलता,
बावा की बुलबुल* वो;
चंचल सी दृष्टि लिए,
एनाक्षी* आ गई।
* एनाक्षी - सुन्दर नयनो वाली, मृगनयनी
* बुलबुल- चहकने के लिए प्रिसिद्ध चिड़िया,मुनिश्री को चिड़िया से बहुत स्नेह है।