Sunday, March 18, 2012

प्रिय पत्नी स्वेता के लिए जो मुझसे दूर है... इस समय।
बड़ा बेसब्र है वो मेरी इनायतें पाने को,
वक़्त पीछे पड़ा है , उसकी ऐ कशिश आजमाने को।
वो रोता बहुत है मेरे पास आने को,
वक़्त उसे रुलाता बहुत है आजमाने को॥

मैं कहता हूँ हौसला बढाने को,
वो लड़ता है मुझसे ऐ दिलासा दिलाने को।
वो नहीं है तो सेहरा तो मेरी ज़िन्दगी भी है,
वो रो कर लगा है उसे दरिया बनाने को॥
घट रहा कुछ इस क़द्र,न देखा, न सोचा था कभी,
वक़्त के पैतरें हैं सब सबक सिखाने को।
मेरा फरमान है ज़रा चुप कर, सम्हल जा साथी,
सिर्फ आंसू तो नाकाफी हैं, यूँ दरिया बनाने को॥
आरज़ू रख,अमल में ला, कि सब खैरियत ही है,
देखना है कितना और है वक़्त बदल जाने को।
हम बने एक दूजे के लिए,है वक़्त का ही करम,
दूर रख कर भी वो, देगा कोई नूर हमे सजाने को।
हम नीड़ बसायेंगे जो साथ मिला है हम-दम,
दूरियां मिट जाएँगी बखुद, सपना ऐ सजाने को.......