Sunday, April 18, 2010

भय, भगवन और मैं कठपुतली



अकेलेपन में उपजी, एक सम्मिश्रित भावों की रचना, जिसमे भय भी है, भगवन भी है...
भय अज्ञात भयंकर,
मन को घेरे रहता,
ये धर्म सहारा दे कर,
मुझको थामे रहता॥

रखता एक पग, आगे,
दो पग पीछे जाता,
कैसा ये विश्वास हुआ,
एक पल में डिग जाता॥

जब न था कुछ,सुख,
तब ही सांचा सुख था,
अब सुख झूठा पाले,
मन भ्रम में है भरमाता॥

तान-वितान, सुर खोये हैं,
लय से टूटा नाता,
एक साधता, दूजा डिगता,
मन धर न पाए साता॥

कौन खीचता डोरी मेरी,
कठपुतली सा नाच नचाता,
कभी शिखर पर,कभी ज़मीं पर,
उठा-पटक कर खेल बनाता॥

इतना नीरव देकर मुझको,
जाने क्या है सिखलाता,
महफ़िल में भी रहूँ अकेला,
मन में भय इतना भर जाता॥

टूट गई होती अब तक तो,
साँसे भी इस पीड़ा में,
पर वो नट ही जाने क्यूँ,
और डोर बढ़ाता जाता.....
























Sunday, April 11, 2010

मेरे आशियाने मे

आज दोपहर गुडगाँव पहुंचा, अपने घर आया, और एकांत मे उपजी एक कविता, गौर कीजिए,

खुश खबरी है,मेरे घर में,

छिपकली ने दिए हैं- अंडे॥

उनमे से कुछ एक खुल भी गए हैं,

कुछ अभी खुल रहे हैं॥

मुझे अब पता चला कि कोई है,

जो खुद को महफूज़ समझता है,

मेरे इर्द-गिर्द ॥

मैंने देखी नहीं कभी कोई,

दूसरी छिपकली अपने घर मे,

मैं तो इसे ही समझता था अब तक नर॥

पर यह तो मादा निकली,

जिसने सम्मान दिया मुझे,

जन कर अपने सुत-सुता मेरे पास॥

मैं अकेला नहीं रहा अब,

घर आने के लिए,

मन मे एक ख्याल रहने लगा है॥

क्या कर रहे होंगे लाडले,

बाकी के अंडे भी खुल चुकें शायद,

पहुंचू जब शाम तक घर पर॥

वो शरमाई सी दुबकी होगी,

कोने मे ,और दरवाजे खुलते ही,

इठलाकर छिप जाएगी,

दीवार पर टंगी तस्वीर के पीछे॥

मैं झांक कर देखता रहूँगा ,

उसे एक टक॥

और वो मुझे भी वैसे ही॥

अब अकेलापन नहीं लगता,

जल्दी रहती है,

ऑफिस से घर आने की,

और खुशी बहुत होती है,

कि कोई है! जो महफूज़ है,

मेरे आशियाने में॥

Sunday, April 4, 2010

स्थानांतरण

मित्रो!
आज काफी दिनों बाद लिख रहा हूँ... इस समय मैं स्वचालित न हो कर वक़्त के प्रवाह मे बह रहा एक जल बिंदु हो गया हूँ।
मैं मध्य प्रदेश का रहने वाला हूँ और अब तक की पढाई और नौकरियां सभी स्वप्रदेश मे चलती रही, ऐसा नहीं कहूँगा के मै भारत का बेटा नहीं हूँ या किसी अन्य प्रदेश से मुझे कोई जुगुप्सा या नफरत है,किन्तु हम जिस लोक संस्कृति और वातावरण मे लम्बे अन्तराल तक रहे हों उससे लगाव हो जाता है और उससे विलग होने मे तकलीफ महसूस करते हैं।
या कहें सामान्य आदमियों की भांति मैं भी हूँ जिसका सुरक्षा कवच उतरता है तो भय मन मे भर जाता है।
खैर आपसे वह बात बांटता हूँ जो अहम् है,और वह है की मेरी सेवाएं कंपनी ने गुडगाँव स्थानांतरित कर दी हैं,
घर भी किराये से ले लिया है,किन्तु अभी ऑफिस ज्वाइन करने मे एक सप्ताह बाकी है, इस सप्ताह मे भोपाल मे ही हूँ,और १२.०४ से गुडगाँव का नियमित रहवासी हो जाऊंगा,
माँ के घर से मौसी का घर बहुत दूर है,देखना है अब मै इस नए पड़ाव पर कितने दिन के लिए आया हूँ, क्यूंकि मंजिल तो यह भी नहीं है॥
बड़ा अचरज होता है, तरक्की के पीछे के वो सच महसूस कर के जो वाकई आपकी कमजोरियों को इंगित करते हैं,घर से दूर होना ,फिर गृह राज्य से दूर होना। पता नहीं आगे क्या है॥
दोपहर के समय की बात है,यानि मेरी ज़िन्दगी का मध्याहन का समय है,मै ३० की आयुवय वाला युवक
अपनी शादी के सपने सजोये (जा को राखे साईंआ मार सके न कोय )एक निर्बाध और सतत जिंदगी मे लय भर रहा था,की तभी वक़्त ने वीणा वापस लेकर guitar थमा दिया। वक़्त शायद आजमाना चाहता हो की मुझे सुरों का ज्ञान है या साधनों का या मे दोनों मे ही तारतम्य बिठा सकता हूँ।
अद्भुत है सब का सब, शहर मे अजनबीपन है, घर मे अकेलापन और काम पर नयी चुनौतियाँ, इसी उधेड़बुन मे कुछ दिन के विराम के बाद आज लिख रहा हूँ।
अपनी दुआओं में मेरे लिए जगह रखना,
मैं पहुँच जाऊंगा, बस इतना भरोसा रखना॥