Sunday, January 3, 2010

बिटिया


नए साल की प्रथम कविता,
उन्मान है बिटिया।
बिटिया चाहती है,
एक ऐसी कविता,
जो उसे कह दे वैसा,
जैसा वो मुझे
महसूस होती है॥
सलोनी को कैसे कहूँ,
की वो है रौनक!
हमारे आँगन की,
चिड़िया है वो,
जो चहक-२ करती है,
बातें, और फुदक-२
बताती है अपनी सौगातें॥
वो जो मेज पर रखे गुलदान को,
भी रखना चाहती है,
उतना ही सजीव,
जितनी जीवन्तता तैरती है,
उसकी अपनी आँखों मे॥
उसने देखा है एक स्वप्न,
उम्दा से उम्दा करने का,
और अब इस चाहत मे ,
वो छोड़ आई है,
माँ का आँचल॥
कर रही है तैयारी ,
एक मुहिम की,
ताकि वो पाले,
एक मुक़ाम॥
वो तकती है
हथेली पर तनी,
आढ़ी व खड़ी लकीरें,
और चाहती है,
जानना उनका अनूठा विज्ञानं॥
वो पढ़ लेना चाहती है,
अपने आना वाला कल,
आज ही से, क्यूंकि,
उसका जिज्ञासु मन ही,
तो उसे बनाता है सबल,
सफल, चंचल
और सुन्दर जैसे
मोगरा के फूल से
लिपटी हुई तितली॥
बिटिया चाहती है एक कविता........