Sunday, August 2, 2009

दोस्तों,
मत सोचिये की मैं ज़रा आता हूँ और बहुत गायब रहता हूँ,,, वक्त शायद कुछ और ही चाहता है॥
मैं खुश हूँ आज बहुत आपसे दिल की बात बांटने मे, की मुझे और बेहतर नौकरी मिल गई ॥ निजी कम्पनिओं मे चलन को हो गया है,की जॉब पर रहते हुए आपकी तरक्की बाधित हो जाती है, चाहे आप कितने ही मुकम्मल तरीके से काम मे मशगुल हों... मेरे साथ भी लगभग वही हुआ,,, पर किस्मत और आप सब की दुआ से मुझे नया मुकाम मिला, मैं अब एक नई कंपनी के लिए काम करूँगा ॥ एक छोटी सी कविता मेरी बात कह रही है, गौर करिएगा ,

एक कमरा अँधियारा था
एक दीप रखने से पहले,

कई असफलताएँ हैं,
लोग कहते हैं -मेरे जीवन मे,,
मगर मुझे ज्ञात है,
एक सफलता का दीप,
सारी असफलताओं का ,
तिमिर पी लेगा सदा के लिए॥

3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

राकेश जी नौकरी की बधाई। रचना में अपने मनोभावों को सुन्दर शब्द दिए हैं।

कंचन सिंह चौहान said...

अभी ऐसे जाने कितने दीपजलेंगे तुम्हारे जीवन में....! तुम बस देखते जाओ....! तुम्हारी निष्ठा, कर्तव्यपरायणता, तुम्हे मेरी नज़र में सब से अलग बनाती है।

और शीर्षक तुमने फिर नही दिया...!

राकेश जैन said...

Dhanyabad ji ,

Di, ye aadmi hai na andar jo hai, wo dekhta hi nahi hai bas...chuchap... khud ko karta samajhta hai aur karne chahne lagta hai... main bhi samjhaata hun is ko ki re tu bas dekh..